पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५५४

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बेलाकेगोनेकाद्वितीययुद्ध । ५५३ दायज दीन्ह्यों परिमालिक को कुण्डल यहाँ दीन रखवाय १०५ इतनी सुनिके ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥ राजा नौकर की समता ना बैठे कौन भाँति से आय १०६ नोक लगायोफिरि भाला की कुण्डल दोऊ लीन उठाय ॥ सजग देखिकै फिरि क्षत्रिनको घोड़ा तुरत दीन दौराय १०७ वेला पहुँची जब महलन मा माता लीन्हो कण्ठ लगाय ॥ भल समझायो रानी अगमा बेटी शोक देउ बिसराय १०८ लिखी विधाता की मेट को कीन्यों घाटि चौडियाराय ।। दुलहिनि बोली तब ताहर की ननदी रोवै तोरि बलाय १०१ . व्याह तुम्हारो कहुँ अनतै अब करि हैं श्वशुर पिथौराराय॥ राजपाट सब तुम्हरे घरमा दौलतभरी पुरीअधिकाय ११० संग न कीन्यो ननदोई का ननदी रोवै तोरिबलाय ।। याह न अनुचित कछु दूसरहै ननदी काह गयी बौराय १११ मेरे चंदेले मरि जावैदे ननदी रोवै तोरि वलाय ।। सुनिक बातें ये भौजीकी बेला बोली क्रोध बढ़ाय ११२ उचित न बातें कछु तेरी हैं अनुचित वात रही बतलाय ।। भाँवरि फिरिकै चंदेले सँग कस्विव्याह औरसँगजाय ११३ कउने गवारे की बिटियाहै ऐसी टोड़े मेदि बतलाय ।। नहिं सुखस्वइहै तुइ महलन में डरिहों अपशि रॉडकरवाय ११४ राँड़ प्रभागिनि की बातें सुनि भौजी चुप्प साधि रहिजाय ॥ तव तो वेला अलबेला यह भूपणवस्त्र सजे अधिकाय ११५ रूप उजागरि सवगुणागरि शोभा कही वून ना जाय ।। कटि लचकीली लो मटकीली पीली दुःख देह दिखलाय ११६ माँग सँवारी सो सुकुमारी मानो इन्द्रधनुप समुदाय ॥