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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५६४

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बेला के गौने का द्वितीय युद्ध । ५६३

देवा सय्यद ऊदन लाखनि सबको मिला चँदेलाराय २२२
मिला भेट करि सब काहुन सों तम्बू बैठिगये सब आय ।।
कीन बड़ाई लखराना की तहँ पर ग्वूब बनाफरराय २२३
सच्ची बातैं उदयसिंह की नहिं कहुँ लसरफसर ब्यवहार ॥
बड़ा प्रतापी रण मण्डल मा ठाकुर उदयसिंह सरदार २२४
पाग बैंजनी शिरपर सोहै दिहुनन धरी ढाल तलवार ॥
चढ़ा उतारू भुजदण्डै हैं आनन पङ्कजके अनुहार २२५
सत्य बड़ाई की लाखनि की भे सब खुशी तहाँ सरदार ।।
जा बिधि चलिकै सब मोहबे ते पहुँचे दिल्ली के दरबार २२६
कीनि नौकरी ज्यहि प्रकार ते कुण्डल जौन भांतिसों लीन ।।
सो सब गाथा तबँ ब्रह्मा ते ठाकुर उदयसिंह कहि दीन २२७
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाको आय ॥
तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय २२८
राम राम की मन रटलाये लीन्ह्यनि अंग बिभूति रमाय ॥ ॥
डारि बघम्बर या मृगछाला आला परब्रह्म को ध्याय २२९
तपनि मिटाई सब देही की रघुबर नाम औषधी पाय ।।
यह सुखदायी सब संतन को या बलदेवैं निशा बिताय २३०
जब लग रैहै संजीवनि यह तबलग धर्मध्वजा फहराय ॥
माथ नवावों पितु माता को जिन बल गाथ गयों सब गाय२३१
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय ॥
हुकुम तुम्हारो जी पावत ना ललिते कहत कौन विधि गाय २३२
रहैं समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औं सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २३३
विपति निवारण जगतारण के दूनों धरों चरणपर माथ ॥