चढ़ै तरंगैं जब भाँगन की आँगन देखि परै सुरलोक ।।
दुख नहिं ब्यापै कछु देहीमा मनके छूटिजात सब शोक ४
भाँग घोटिकै नित प्रति पीवै जीवै वर्ष एक शत एक ।।
हर को ध्यावै तब सुखपावै पूरी होय तबै यह टेक ५
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका गुनो शूरमन क्यार ।।
बेला काटी शिर ताहर का सोई गाथ कहौं विस्तार ६
अथ कथाप्रसंग ॥
जहाँ चँदेले ब्रह्मा ठाकुर बेला गई तहाँ पर धाय ।।
बैठी पलँगा कर पंखालै लागी करन पवन सुखदाय १
ग्वरि २ बहियां हरि २ चुरियाँ शोभा कही वूत ना जाय ।।
शची मेनका की गिन्ती मा बेला रूप राशि अधिकाय २
यहु अलवेला ब्रह्मा ठाकुर बेलै बोला वचन सुनाय ।।
टरिजा टरिजा री आँखिनते दीखे गात सबै जरिजायँ ३
घटिहा राजा की कन्या ते का सुख होय मोहिं अधिकाय ॥
इतना सुनिकै बेला बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४
तुम्हैं मुनासिब यह नाहीं है जैसी कहौ चँदेलेराय ।।
राज कुटुँब सब अपनो तजिकै आइन चरण शरणमें धाय ५
सुनि सुनि बातैं अब प्रीतम की छाती घाव होत अधिकाय ॥
परवश कन्या की गति जैसी तैसी रही चँदेलेराय ६
ऐसी तुमको अब चहिये ना जैसी सूखी रहे सुनाय ।।
सुरपुर अहिपुर नरपुर माहीं प्रीतम कौन मोर अधिकाय ७
प्यारे प्रीतम इक तुमहीं हौ साँचो साँच दीन बतलाय ।।
सुनिकै बातैं ये बेला की बोला फेरि चँदेलाराय ८
मूड़ काटिकै अब ताहर का प्यारी मोहिं देउ दिखलाय ।।