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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५६८

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बेला ताहर का मैदान । ५६७

घात करेजे का तब पूरै औ सुख सम्पति मोहिं सुहाय ९
इतना सुनिकै बेला बोली स्वामी बचन करो परमान ।।
कपड़ा घोड़ा दै कोड़ा निज पठवो मोहिं समर मैदान १०
एक लालसा पै डोलति है स्वामी पूरि करो यहि काल ।।
नगर मोहोबा मोहिं पठवावो दर्शन करों सासु के हाल ११
इतना सुनिकै ब्रह्मा बोले जावो साथ लहुरवाभाय ॥
बेला बोली तब स्वामी ते यह नहिं उचित मोहिं दिखलाय १२
ब्रह्मा बोले फिरि लाखनि ते तुमहीं जाउ कनौजीराय ।।
बेला बोली फिरि स्वामी ते यह नहिं उचित मोहिं दिखलाय १३
बदला लेहैं संयोगिनि का रखिहैं मोहिं कनौजै जाय ॥
ह्वई हँसौवा दुहुँ तरफा का प्रीतम करिहौ कौन उपाय १४
ब्रह्मा बोले फिरि आल्हा ते तुम चलि जाउ बनाफरराय ।।
यह मन भाई तब बेला के पलकी चढ़ी तड़ाकाधाय १५
चढ़ि पचशब्दा हाथी ऊपर अल्हा ठाकुर भये तयार ।।
डोला चलिभा फिरि बेला का संगै चले बहुत असवार १६
यह गति देखी माहिल ठाकुर लिल्ली उपर भये असवार ।।
जहँ पर बैठे पृथीराज हैं पहुँचा उरई का सरदार १७
बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय ॥
जो कछु गाथा थी तम्बू की माहिल यथातथ्य गा गाय १८
तब महराजा दिल्ली वाला चौड़ै तुरत लीन बुलवाय ।।
खब‌रि सुनाई सब चौंड़ा को जो कछु माहिल दीन बतलाय १९
नार कॅकरिहा पर तुम घेरो डोला लावो बेगि छिनाय ।।
हुकुम पायकै महराजा को फौज तुरत लीन सजवाय २०
चढ़ि इकदन्ता हाथी ऊपर चौंड़ा कूचदीन करवाय ।।