पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७२

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बेलाताहरकामैदान । ५७१ मा अति मेला तहँ नारिन का शोभा कही धूत नाजाय ५७. मुहँ दिखलाई रानी मल्हना तहँपर दीन नौलखाहार ॥ पायँ लागिकै वेला रानी कण तुरतै दीन उतार ५८ भीर मेहरियन के हटिंगै जव अकसर बहू रही त्यहिठाय ।। मल्हना पूँछ तब वेला ते साँची साँच देय बतलाय ५६ बालम तुम्हरे अब कैसे हैं कह कह लगे अंग किनघाय।। इतना सुनिकै वेला वोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ६० वाई दहिनी दउ कोखिन मा लागी सेल कटारी घाय॥ गाँसी खटकति है मस्तक में मैया विपति कही ना जाय ६१ वाते सुनिके ये वेला की मल्हना गिरी पछाराखाय ।। कथा पुराणन की बातें बहु वेला कहा तहाँ समुझाय ६२ कथा सुनाई गंधारी की ज्यहि के मरे एकशत पूत ॥ कथा बताई यदुनन्दन की जहँ मरिगये सबै रजपूत ६३ कथा बखानी रघुनन्दन की नृपपद छूटि मिला वनबास ॥ कही कहानी दशकन्धर की ज्यहिके भई वंशकी नाश ६४ वेला वानी सुनि रानी सब तुरतै शोक दीन विसराय ।। प्रसव वेदना ज्यहि पर बीती जीतीस्वईशोक अधिकाय६५ बेला बोली चन्द्रावलि ते ननदी साँच देय बतलाय ।। ननदी मोहिं देय दिखलाय ६६ इतना सुनिकै चन्द्रावलि तह गै सतखण्डा तुरत लिवाय ॥ को गति बरणे सतखण्डाकै साँचो इन्द्र धाम दिखलाय ६७. खम्भन रत्न जटित को काम। कैसो सम्भ्रम मन जो हो। बैठत लहै तहाँ विश्राम ६८. बेला पहुँची जव छज्जा पर पक्षिन भीर दीख अधिकाय ॥ भैया अपने को सतखण्डा चंदन किंवरिया जहँ लागी है