कोकिल हंस मोर पारावत तीतर लवा सुवा सुखदाय ६९
शोभा देखत तहँ छज्जा की बेला बार बार पछिताय ।।
जीवत प्रीतम हमरे होते तौ सुख भोग होत अधिकाय ७०
आज काल्ह दिन प्रीतम झेलैं ताते नरक सरिस दिखलाय ।।
हाय ! विधाता की मरजी अस भारी विपति गई शिर आय ७१
प्रीतम प्यारे के सतखण्डा हम पर फाटि गिरो अरराय ।।
यह मन विनवत बेला रानी महलन गई तड़ाका आय ७२
बेला बोली फिरि मल्हनाते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
मोरि लालसा यह डोलति है चन्दन बगिया देउ दिखाय ७३
सुनिकै बातैं ये बेला की पलकी तुरत लीन मॅगवाय ।।
बैठि पालकी महरानी सब चन्दन बाग पहूँची जाय ७४
पुष्पवाटिका तहँ राजत है छाजत सवै दिनन ऋतुराज ।।
बेला चमेली श्री नेवारकी पंक्ती रहीं एक दिशिछाज ७५
विसुनकान्ता कहुँ कहुँ फूले कहुँ कहुँ फूले सुर्ख अनार ॥
श्वेत रक्त औ मधुर गुलाबी पाटल फूले भांति अपार ७६
फुली चांदनी श्वेत वरणहैं जिन पर केलि करत बहुभुंग ।।
को गति वरणै दुपहरिया कै ज्यहिको रक्तवरण है रंग ७७
श्वेत रक्त औ मधुर गुलाबी सब विधि फलि रहा करवीर ।।
कदली केवड़ा यकदिशिराजत छूटत देखि मुनिनको धीर ७८
श्वेत रक्त तहँ चन्दन छाजैं राजै कोकिल मोर चकोर ।।
पीव पपीहा की रट सुनिकै विरहिनि पीरहोय अतिघोर ७६
यह सुख सम्पति बेला लखिकै कीन्ह्यो घोर शोर चिग्घार ।।
जितनी रानी थीं बगिया में सबहिन छंड़ि दीन डिंडकार ८०
मोती ऐसे आँसू ढरकै बेला हृदय शोक गा छाय ।।
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७३
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८
आल्हखण्ड । ५७२
