पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७३

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आल्हखण्ड । ५७२ कोकिल हंस मोर पारावत तीतर लवासुवा सुखदाय ६९ शोभा देखत तहँ छज्जा की वेला वार वार पछिताय ।। जीवत प्रीतम हमरे होते तो सुखभोगहोतअधिकाय७० आज काल्ह दिन प्रीतम झेलें ताते नरक सरिस दिखलाय ।। हाय ! विधाताकी मरजी अस भारीविपति गई शिर आय ७१ प्रीतम प्यारे के सतखण्डा हम पर फाटि गिरो अरराय ।। यह मन विनवत वेला रानी महलन गई तड़ाकाबाय ७२ बेला बोली फिरि मल्हनाते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।। मोरि लालसा यह डोलति है चन्दन बगिया देउ दिखाय ७३ सुनिक बातें ये वेला की पलकी तुरत लीन मॅगवाय ।। वैठि पालकी महानी सब चन्दन वाग पहूँची जाय ७४ पुष्पवाटिका तहँ राजत है छाजत सवै दिनन ऋतुराज ।। वेला चमेली श्री नेवारकी पंक्ती रहीं एक दिशिलाज ७५ विसुनकान्ता कहुँ कहुँ फूले कहुँ कहुँ फूले सुर्ख अनार ॥ श्वेत रक्त औ मधुर गुलाबी पाटल फूले भांति अपार ७६ फुली चांदनी श्वेत वरणहैं जिन पर केलि करत बहुभुंग ।। को गति वरणे दुपहरिया के ज्यहिको रक्तवरण है रंग ७७ श्वेत रक्त औ मधुर गुलाबी सब विधि फूलि रहा करवीर ।। कदली केवड़ा यकदिशिराजत छूटत देखि मुनिनको शीर ७८ श्वेत रक्त तहँ चन्दन छाजें राज कोकिल मोर चकोर ।। पीव पपीहा की रट सुनिक विरहिनि पीरहोयअतिघोर ७६ यह सुख सम्पति वेला लखिक कीन्ह्यो घोर शोर चिग्घार ।। जितनी रानी थीं वगिया में सबहिनछोडिदीनडिंडकार ८० मोती ऐसे आँसू ढरके बेला हृदय शोक गा छाय ।।