पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७५

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आल्हखण्ड । ५७४ भये खेवैया पाल्हा ठाकुर पहुँचे पार तड़ाका आप ६३ अतिशुभ मंदिर ब्रह्मानंद का शोभा कही वृत ना जाय ।। गई तडाका सब महरानी चकितलखें चहूँदिशिधाय ६४ पंसासारी ब्रह्मानंद की वेला नजरि परी सो आय ॥ तब अलबेला बेलारानी बोली सुनो बनाफरराय ६५ बड़े खिलारी तुम चौपरिके सो अब मोहिं देउ सिखलाय॥ इतना सुनिकै आल्हा बैठे चौपरि तहाँ दीन फैलाय ६६ बेला खेले पंसासारी अंचल अपन उड़ावतिजाय। यह गति देखी आल्हा गकुर नीचेलीन्यो शीश झुकाय६७ बहुतक रूप धरे बेला ने आल्है मोह रही करवाय॥ चाटक नाटक करि सवहारी मोहा नहीं बनाफरराय ६८ रूप भयङ्कर दशवों धरिकै डाइनि बैठिगई मुहबाय ॥ यहिका लखिकै आल्हा ठाकुर तुस्तै खाँड़ा लीन उठाय ६६ गर्जत बोले आल्हा ठाकुर का तू मोहिं रही डरवाय ॥ देखि भयङ्कर क्षत्री डरपै कीरति जावै सबै नशाय १०० हो अपकीरति जब दुनिया में तब तो मृत्यु नीकि लैजाय । ऐसे चैसे हम क्षत्री ना जो अब देव धर्म नशाय १०१ रूप मोहनी माता जाना डाइनि शत्रुरूप दिखलाय॥ अब तू पलटे कित स्वरूप को कित तू करै समररणआय १०२ इतना सुनते वेलारानी प्रथम लीन्यो रूप बनाय ।। पाप तुम्हारे कछु मनमें ना साँचे शूर बनाफरराय १०३ याचे तुमका हम तम्बूमा अपने लाइन साथ लिवाय ।। संग लहुरखा का लीन्यो ना हमरे उमर सरिससोआय १०४ संगलकड़ियनमिलि अग्नी को ज्वाला अधिक र अधिकाय॥