भये खेवैया आल्हा ठाकुर पहुँचे पार तड़ाका आय ९३
अतिशुभ मंदिर ब्रह्मानँद का शोभा कही वूत ना जाय ।।
गई तड़ाका सब महरानी चकितलखैं चहूँदिशिधाय ९४
पंसासारी ब्रह्मानँद की बेला नजरि परी सो आय ॥
तब अलबेला बेलारानी बोली सुनो बनाफरराय ९५
बड़े खिलारी तुम चौपरिके सो अब मोहिं देउ सिखलाय ॥
इतना सुनिकै आल्हा बैठे चौपरि तहाँ दीन फैलाय ९६
बेला खेलै पंसासारी अंचल अपन उड़ावति जाय ।।
यह गति देखी आल्हा ठाकुर नीचे लीन्ह्यो शीश झुकाय ९७
बहुतक रूप धरे बेला ने आल्है मोह रही करवाय ॥
चाटक नाटक करि सबहारी मोहा नहीं बनाफरराय ९८
रूप भयङ्कर दशवों धरिकै डाइनि बैठिगई मुहबाय ॥
यहिका लखिकै आल्हा ठाकुर तुरतै खाँड़ा लीन उठाय ९९
गर्जत बोले आल्हा ठाकुर का तू मोहिं रही डरवाय ॥
देखि भयङ्कर क्षत्री डरपै कीरति जावै सबै नशाय १००
हो अप कीरति जब दुनिया में तब तो मृत्यु नीकि ह्वैजाय ।।
ऐसे वैसे हम क्षत्री ना जो अब देवैं धर्म नशाय १०१
रूप मोहनी माता जाना डाइनि शत्रुरूप दिखलाय ॥
अब तू पलटे कित स्वरूप को कित तू करै समर रण आय १०२
इतना सुनतै बेलारानी प्रथमै लीन्ह्यो रूप बनाय ।।
पाप तुम्हारे कछु मन में ना साँचे शूर बनाफरराय १०३
याॅचे तुमका हम तम्बूमा अपने लाइन साथ लिवाय ।।
संग लहुरवा का लीन्ह्यो ना हमरे उमर सरिस सो आय १०४
संग लकड़ियन मिलि अग्नी को ज्वाला अधिक२ अधिकाय॥
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आल्हखण्ड । ५७४
