पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७६

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बेलाताहरकामैदान । ५७५ यामें संशय कछु नाहीं है विपनमोहिं दीन बतलाय१०५ पै तहँ सज्जन नौ दुर्जनका मंद औ तीक्ष्ण भेदहै भाय ।। सज्जनक्षत्रीअमकलियुगमा नहिकहुँघरनघरनअधिकाय१०६ जस तुम द्यावलि के उपजेहौ कीरति रही लोक में छाय॥ उत्तम करणी करि नर सज्जन कोरनिध्वजा देय फहराय १०७ धर्म नशा ते मरिजा जिन अपकीरति बहुतसुहाय॥ साँचे याँचे तुम क्षत्री हो कीरतिकहीलोकसबगाय १०८ धर्म पतिव्रत के शपथन ते आशिर्वाद बनाफरराय ।। कीरति गाई जो सज्जन की गावतस्वऊ सरिसबै जाय १०६ सज्जन गावै गाय सुनावै पूरो अर्थ देय बतलाय ।। जो मन भावै क्या सज्जन के पावै अमरलोक सो भाय ११० ऐसे कीरति के सागर तुम साँचे धर्म बनाफरराय ॥ इतना कहते तहँ वेला के मल्हनाआदिगईसबआय१११ वैठिक नैया सब महरानी सागर पार पहूँचीं जाय ॥ बारह ताल हते मोहने में बेला दीख सबनकोधाय ११२ बेला बोली फिरि मल्हना ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।। मिले आज्ञा मोहिं माता की लश्करजाउँ तहाकाधाय ११३ कीनि प्रतिज्ञा हम प्रीतम सों माता साँच देय बतलाय ।। मूड़ काटिकै हम ताहरको औ स्वामीको देव दिखाय११४ जग मर्यादा राखन हेतू सेवक भाव देव दिखलाय ॥ प्रीतम प्यारे की आज्ञा सों जीतोसमरसगानिजभाय ११५ मोहिं विधाता की मर्जी थी अनरथ रूप दीन उपजाय ।। अर्थ न पावा कछु देही का भइजगदेह अकारय माय ११६ स्वास्थ प्रीतम के सँग होती सो विधि दीन वियोग कराय।।