यामें संशय कछु नाहीं है बिप्रनमोहिं दीन बतलाय १०५
यै तहँ सज्जन औ दुर्ज्जनका मंद औ तीक्ष्ण भेदहै भाय ।।
सज्जन क्षत्री असकलियुगमा नहिं कहुँ घरन घरन अधिकाय १०६
जस तुम द्यावलि के उपजेहौ कीरति रही लोक में छाय ॥
उत्तम करणी करि नर सज्जन कीरति ध्वजा देयँ फहराय १०७
धर्म नशावैं ते मरिजावैं जिन अप कीरति बहुत सुहाय ॥
साँचे याँचे तुम क्षत्री हो कीरति कहीलो कस बगाय १०८
धर्म पतिव्रत के शपथन ते आशिर्बाद बनाफरराय ।।
कीरति गाई जो सज्जन की गावत स्वऊ सरिस ह्वैजाय १०९
सज्जन गावै गाय सुनावै पूरो अर्थ देय बतलाय ।।
जो मन भावै क्याहु सज्जन के पावै अमरलोक सो भाय ११०
ऐसे कीरति के सागर तुम साँचे धर्म बनाफरराय ॥
इतना कहते तहँ बेला के मल्हना आदि गई सब आय १११
बैठिकै नैया सब महरानी सागर पार पहूँचीं जाय ॥
बारह ताल हते मोहबे में बेला दीख सबन को धाय ११२
बेला बोली फिरि मल्हना ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
मिले आज्ञा मोहिं माता की लश्कर जाउँ तड़ाकाधाय ११३
कीनि प्रतिज्ञा हम प्रीतम सों माता साँच देयँ बतलाय ।।
मूड़ काटिकै हम ताहर को औ स्वामी को देव दिखाय ११४
जग मर्यादा राखन हेतू सेवक भाव देव दिखलाय ॥
प्रीतम प्यारे की आज्ञा सों जीतों समर सगानिज भाय ११५
मोहिं विधाता की मर्जी थी अनरथ रूप दीन उपजाय ।।
अर्थ न पावा कछु देही का भइजगदेह अकारथ माय ११६
स्वारथ प्रीतम के सँग होती सो विधि दीन बियोग कराय।।
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बेला ताहर का मैदान । ५७५
