पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । ५७६ जन्म अकारथ यह दुनियामाँ कौनीभाँति काटिहाँमाय ११७ नेनन योवन औं बैनन को नहिं कछु पूरभयो व्यवहार ।। अंग न पर्शा हम प्रीतम का ना पद पूर भयो भार ११८ सदा अभागी नर नारिन को नाहक रचा नहीं कर ॥ कर्म शुभाशुभ जो लाग्यो है सोई भोगि रहा संसार ११६ यहै सोचिकै मन अपने मा आयसु देउ तड़ाका माय ।। समय किफायत गाथा भारी आरी कहे जान हैजाय १२० इतना सुनतै मल्हना रानी मनमा बार वार पचिताय ।। दुःद विधाता हमका दीन्यो गाथा कही कहाँलगजाय १२१ इतना सोचत मन अपने मा आयसु फेरि दीन हाय ।। चरण लागि महरानी के बेला कूच दीन करवाय १२२ संग बनाफर आल्हा गकुर पलकी चली तड़ाका धाय ।। वेला बोली तहँ आल्हा ते साँची सुनो बनाकरराय १२३ घखों चौतरा गजमोतिनि का यह मन गई लालसा छाय॥ इतना सुनते आल्हा गकुर सिरसा चले तड़ाकाधाय १२४ जहाँ चौतरा गजमोतिनि का डोला तहाँ दीन धरवाय ॥ उतरिकै डोला ते वेला तव चन्दन अक्षत फूलमँगाय १२५ कीन चबुतरा की पूजा भल मन में बार बार तहँ ध्याय ।। सतीशिरोमणिगनमोतिनिजो सॉचे शूर वनाफरराय १२६ आभा बोलै तौ चौराते ज्यहि संतोष मोहिं जाय ।। दोली आमा गजमोतिनि की माहिल डारे कन्तमराय १२७ सत्त विधाता मोको दीन्ह्यो सत्ती भयूँ यहां पर आय ।। तीनि महीना सत्रह दिनमा सवमहनामथजायपटाय १२५ दिल्ली मोहना दउ शहरन में राँडै राँई परें दिखाय।।