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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५७९

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आल्हखण्ड । ५७८

साथ न लेवे हम काहू को ठाकुर उदयसिंह सरदार १४१
इतना कहिकै बेलारानी लश्कर कूच दीन करवाय ॥
बाजत डंका अहतंका के निर्भय चले शूर मा जायँ १४२
दिल्ली केरे फिरि डाँडे़ मा लश्कर सबै पहुँचा आय ॥
गड़िगे तम्बू तहँ बेला के सवरँग धजा रहे फहराय १४३
लिखी हकीकति फिरि पिरथी को कागज कलमदान मँगवाय ।।
बेला पहुँची अब मोहबे का औ घर जिया चँदेलाराय १४४
अधकर बाकी जो गौने की सो अब तुरत देउ पठवाय ॥
नहीं तो ब्रह्मा हैं डाँड़े पर दिल्ली शहर देयँ फुँकवाय १४५
ताहर नाहर के हाथे सों अधकर तुरत देउ पहुँचाय ॥
कुशल आपनी जो तुम चाहौ मानो साँच पिथौराराय १४६
इतना लिखिकै बेलारानी धावन हाथ दीन पठवाय ।।
धावन चलिभा फिरि तम्बू ते औ दरबार पहूँचा आय १४७
लागि कचहरी पृथीराज की भारी लाग राज दरबार ।।
बैठक बैठे सब क्षत्री हैं टिहुन न धरे नांगि तलवार १४८
तहँ परवाना धावन दीन्ह्यो दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
खोलिकै चिट्ठी पिरथी पढ़िकै तुरतै गये सनाका खाय १४९
उत्तर लिखिकै फिरि चिट्ठी का धावन तुरत दीन लौटाय ।।
ताहर बेटा को बुलवायो औ सब हाल कहा समुझाय १५०
बेटी हमरी चैरिनि बैंगे ब्रह्माठाकुर दीन जियाय ॥
अधकर लेने को आये हैं सवियाँफौजलेउसजवाय १५१
जायके पहुॅचो समरभूमि में अधकर तहाॅ देउ चुकवाय ।।
मारे मारे तलवारिन के सबके देवो मूड़ गिराय १५२
अधर तबहीं ई भरि पैहैं जैहैं भागि चँदेलेराय ।।