पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५८०

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बेलाताहरकामैदान । ५७६ इतना सुनिक ताहर चलिमे दोऊहाथजोरिशिरनाय १५३ हुकुम लगायो फिरि लश्करमें तुरतै सजन लागि सरदार ॥ झीलमवखतर पहिरिसिपाहिन हाथम लई ढालतलवार १५४ सजे बछेड़ा ताजी तुर्की मुश्की घोड़ भये तय्यार ॥ लक्खा गरी पचकल्यानी सुर्खा सिर्गाआदि अपार १५५ डारि स्काय गंगा यमुनी आननदीन लगाम लगाय ॥ हथी महाउत हाथी लेके तिनका दीन भूमि बैठाय १५६ धरी अंबारी तिन हाथिन पर बहुतन हौदा दीन धराय ।। चुम्बक पत्थर के हौदा है जिनमेंसेलबलौंचाखाय १५७ कोउ कोउ हाथी इकदन्ता हैं कोउ दुइदन्त श्वेत गजराज ॥ यकमिलके सब चिघरत है मानो कोपकीन सुरराज १५८ सजि- फौजै दल बादल सों ताहर गये मातु के धाम ॥ हाल बतायो सब अगमा सो करिकैचलिभादण्डप्रणाम १५९ प्यारी अपनी के महलन में ताहर गये तड़ाका धाय ॥ बैठा ठाकुर जब शय्यापर दैया विपति कही ना जाय१६० राह कटाथै मंजारी तहँ होवे छींक तडातड़ आय ॥ झंझा बायू डोलन लागी आयूगईजनोनगच्याय १६१ बादल छायो आसमान में कउँधालपकिलपकिरहिजाय ।। चमकै विजुली त्यहि समया मा दमकै आसमान हहराय १६२ थर थर थर थर थर थर कंप झपै आसमान त्यहिकाल ॥ दर दर दर दर दर दर दरके फरकैदहिन अंगत्यहिकाल१६३ मरणहि सूचित भो पत्नी को ननँदी वचन गये ठहराय ॥ उठीतड़ाका लखि अशकुनको प्रीतम गरे गई लपटाय १६४ वाहर रोक्यो त्यहि समया मा अपनी माया मोह भुलाय ।