पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५८७

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आल्हखण्ड । ५८६ देया दैया करि मरि जावै ज्यहिनहिंचरणकमलआधार छूटि सुमिनी गै देवी के शाका सुनो शूरमन क्यार॥ चन्दन बगिया को कटवाई ठाकुर उदयसिंह सरदार ५ अथ कथाप्रसंग ॥ ब्रह्मा ठाकुर त्यहि समया मा साँचो मरणहार दिखलाय ॥ गॉसी खटकति है मस्तक में कोखिन सेल कटारी घाय ? बेला रानी त्यहि समया मा ले शिर तहाँ पहूँची जाय ॥ जहाँ चंदेला सुख शय्या मा करहत रहे वाण के घाय २ धरि शिर दीन्ह्यो तहँ ताहरको बोली हाथ जोरि शिरनाय ॥ कीनि आज्ञा पूरण स्वामी मारा समर मापनो भाय ३ सुनिकै वाते ये बेला की देखन लाग चंदेलाराय ॥ जब शिर दीख्यो सो ताहरका तब मनमोद भयो अधिकाय ब्रह्मा बोले फिरि वेला ते प्यारी साँच देय बतलाय ॥ मैके ससुरे सब सुख तुम्हरे चाहो रहौ तहाँ तुम जाय नहीं भरोसा अब जीवनका प्यारी प्राणरहे नगच्याय ॥ इतना कहिक ब्रह्मा ठाकुर सुरपुर गयो तडाकाधाय ६ बेला गिरिकै रोवन लागी कारण करनलागि अधिकाय॥ जो मैं जनतिउँ यह गति होई काहे हनति समर में भाय ७ हाय! विधाताकी मर्जी यह हमरे बूत सही ना जाय। चटक चूनरी ना मेली भै ना हम धरा सेज पै पाँय खबरि पटुंचिगें यह महलन में रानी गिरी भरहरा खाय ॥ हाहाकार परा मोहवे मा कोऊ रंधा भात ना खाय ऊदन लाबनि दोऊ आये जहॅपर मरा चंदेलाराय ॥ ने समुझायें भल बेलाको रानी शोक देउ बिसराय १०