दैया दैया करि मरि जावै ज्यहिनहिंचरण कमल आधार ४
छूटि सुमिनी गै देबी कै शाका सुनो शूरमन क्यार ॥
चन्दन बगिया को कटवाई ठाकुर उदयसिंह सरदार ५
अथ कथा प्रसंग ॥
ब्रह्मा ठाकुर त्यहि समया मा साँचो मरणहार दिखलाय ॥
गॉसी खटकति है मस्तक में कोखिन सेल कटारी घाय १
बेला रानी त्यहि समया मा लै शिर तहाँ पहूँची जाय ॥
जहाॅ चँदेला सुख शय्या मा करहत रहै वाण के घाय २
धरि शिर दीन्ह्यो तहँ ताहरको बोली हाथ जोरि शिरनाय ॥
कीनि आज्ञा पूरण स्वामी मारा समर आपनो भाय ३
सुनिकै बातैं ये बेला की देखन लाग चँदेलाराय ॥
जब शिर दीख्यो सो ताहर का तब मन मोद भयो अधिकाय ४
ब्रह्मा बोले फिरि बेला ते प्यारी साँच देयँ बतलाय ॥
मैके ससुरे सब सुख तुम्हरे चाहौ रहौ तहाँ तुम जाय ५
नहीं भरोसा अब जीवन का प्यारी प्राण रहे नगच्याय ॥
इतना कहिकै ब्रह्मा ठाकुर सुरपुर गयो तड़ाकाधाय ६
बेला गिरिकै रोवन लागी कारण करन लागि अधिकाय ।।
जो मैं जनतिउँ यह गति होई काहे हनति समर में भाय ७
हाय! विधाताकी मर्जी यह हमरे बूत सही ना जाय ।।
चटक चूनरी ना मैली भै ना हम धरा सेज पै पाँय ८
खबरि पहुँचिगें यह महलन में रानी गिरीं भरहरा खाय ॥
हाहाकार परा मोहबे मा कोऊ रँधा भात ना खाय ९
ऊदन लाखनि दोऊ आये जहँपर मरा चॅदेलाराय ॥
ने समुझावैं भल बेला को रानी शोक देउ बिसराय १०