पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९३

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आल्ह खण्ड । ५६२ सुनिकै बातें ये वेला की बोला फेरि बनाफरराय ।। सूखो चन्दन हग कनउज ते स्वामिनिआजदेय मंगवाय ७१ पै नहिं जावें अब दिल्ली को तुम ते साँच देय वतलाय ।। इतना सुनिके वेता बोली सॉची कही बनाफरराय ७२ मंशा तुम्हरी पूरण ढगै जूझे समर बँदेलेराय ।। हम पर मोहे तुम ऊदन थे ताते डारे कन्त मराय ७३ चहौ इकन्त भोग जो करनो सोहै कठिन बनाफरराय । परपति भोगै अव वेला ना चतनधजीधजीउडिजाय७४ भल चतुराई तुम सीखी थी कीन्ही खूब समय पर भाय ।। पूर मनोरथ तब होई ना मानो साँच वनाफरराय ७५ राज पाट अरु तनु धनकारण हम नहिं सके धर्मको टारि ।। सतयुग त्रेता अरु द्वापरके करिव धर्म यहां अनुहारि ७६ चन्दनखम्भा की तुम लावो की अब लेउ शाप विकराल। भूठ न यामें कछु जानो तुम बेटा देशराजके लाल ७७ इतना सुनिकै डरे बनाफर तब फिरि कहा कनौजीराय ।। हूँ तुम बेटी महराजा की काची वात रहिउ बतलाय ७८ ऐस बनाफर नहिं ऊदनहैं जो रण डार कन्त मराय ।। मौत आयगै चन्देले के उनके बुद्धिगयी बौराय ७६ भरी कचहरी परिमालिक की बीरा लीन्यनि हाथड़ाय ।। बीरालेती जो ब्रह्मा ना ऊदन विदा लेतिकरवाय ८० घटिहा सजा परिमालिकहैं घटिहा वंश वीर चौहान ।। घाटि न करतीं जो ब्रह्माते जीतत कौन समरमैदान ८१ चंदन जितनो तुम बतलावो तितनो देय आज मँगवाय । पगिया भरझी नहिं दिल्ली में अनहक प्राण गँवा जाय ८२