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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९३

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आल्हखण्ड । ५९२

सुनिकै बातैं ये बेला की बोला फेरि बनाफरराय ।।
सूखो चन्दन हग कनउज ते स्वामिनि आज देयँ मँगवाय ७१
पै नहिं जावें अब दिल्ली को तुम ते साँच देयँ बतलाय ।।
इतना सुनिकै बेला बोली सॉची कहौ बनाफरराय ७२
मंशा तुम्हरी पूरण ह्वैगै जूझे समर चँदेलेराय ।।
हम पर मोहे तुम ऊदन थे ताते डारे कन्त मराय ७३
चहौ इकन्त भोग जो करनो सोहै कठिन बनाफरराय ।।
पर पति भोगै अब बेला ना चहुतन धजी धजी उड़ि जाय ७४
भल चतुराई तुम सीखी थी कीन्ही खूब समय पर भाय ।।
पूर मनोरथ तब होई ना मानो साँच बनाफरराय ७५
राज पाट अरु तनु धनकारण हम नहिं सकैं धर्म को टारि ।।
सतयुग त्रेता अरु द्वापर के करिबे धर्म यहां अनुहारि ७६
चन्दन खम्भा की तुम लावो की अब लेउ शाप विकराल ।।।
झूंठ न यामें कछु जानो तुम बेटा देशराज के लाल ७७
इतना सुनिकै डरे बनाफर तब फिरि कहा कनौजीराय ।।
ह्वै तुम बेटी महराजा की काची बात रहिउ बतलाय ७८
ऐस बनाफर नहिं ऊदन हैं जो रण डारैं कन्त मराय ।।
मौत आयगै चन्देले कै उनके बुद्धि‌ गयी बौराय ७९
भरी कचहरी परिमालिक की बीरा लीन्ह्यनि हाथछँड़ाय ।।
बीरा लेती जो ब्रह्मा ना ऊदन विदा लेति करवाय ८०
घटिहा राजा परिमालिक हैं घटिहा वंश वीर चौहान ।।
घाटि न करतीं जो ब्रह्मा ते जीतत कौन समर मैदान ८१
चंदन जितनो तुम बतलावो तितनो देयँ आज मँगवाय ।।
पगिया अरझी नहिं दिल्ली में अनहक प्राण गँवावैं जायँ८२