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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९४

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चन्दन बाग केर मैदान । ५९३

इतना सुनिकै बेला बोली मानो साँच कनौजीराय ।।
प्राण पियारे जो तुम्हरे हैं तो तुम कूचदेउ करवाय ८३
तेहा राखौ रजपूती का चन्दन खम्भ देउ मँगवाय ॥
नहीं जनाना बनि मोहबे ते जावो लौटि कनौजीराय ८४
शाप में देहौं अब ऊदन का तुमते साँच देयँ बतलाय ॥
मोहबा दिल्ली द्वउ शहरन में परि हैं राँड़ राँड़ दिखलाय ८५
इतना सुनिकै लाखनि बोले बेला साँच देयँ बतलाय ।।
बहुत झमेला ते मतलब ना चन्दन देब वही मँगवाय ८६
तौ तौ लड़िका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरो मुड़वाय ॥
सुनि के बातें लखराना की बेला बड़ी खुशी लैजाय ८७
तबै बनाफर उदयसिंहजी तहँते कूच दीन करवाय ॥
फिरि यह बोले लखराना ते मानो कही कनौजीराय ८८
मृत्यु रूप यह बेला रानी दीन्ह्यसि वेलि द्वऊ कुल भाय ।।
नाश करनके हित यह बेला चन्दन खम्भ रही मँगवाय ८९
नहीं तो मतलब का खम्भाते जब हम और देयँ मँगवाय ।।
अपन‌ रँड़ापा ते चाहति है सब संसार राँड़ ह्वैजाय ९०
प्राण आपने हम मल्हना को दीन्हे व्याह नेगमें भाय ।।
सो अब बिरिया चलि आई है बेला मृत्यु बहाना आय ९१
क्यहु समुझाये ते समुझै ना बेला विपति बेलि हरियाय ।।
जियत पिथौरा के ह्वैहै ना‌ की हम खम्भ लेयॅ उखराय ९२
दुखित पिथौरा अब दुनिया मा मरिगे सात पूत रणआय ।।
पुत्र न एको अब पृथ्वी के जो अवलम्ब परे दिखलाय ९३
बिना पुत्र के गति नहिं होवे वेद औ शास्त्र रहे बतलाय ।।
अगमा मल्हना द्वउ रानिन की बेला नाशिदीन करवाय ९४