हवै झमेला हमपर तुमपर कैसी करैं कनौजीराय ॥
ऐसी सुनिकै लाखनि बोले मानो साँच बनाफरराय ९५
होनी ह्वैहै सो ह्वैहै अब याही ठीक लेउ ठहराय ।।
मृत्यु आयगै जब रावण कै तब वन वास गये रघुराय ९६
कोऊ रक्षा तब कीन्ह्यो ना जब मुनिपिया समुन्दरजाय ।।
ब्रह्मा विष्णु शिव सम्बन्धी इनते और कौन अधिकाय ९७
बिपति समुन्दर पर जब आई तब सब गये तुरत अलगाय ॥
त्यहिते सम्मत अब याही है भुरहीं कूच देउ करवाय ९८
मर्जी होई नारायण की होई स्वई बनाफरराय ।।
इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची कहाँ कनौजीराय ९९
सम्मत ठीको अब याही है दिल्ली चलैं तड़ाकाधाय ॥
मर्जी याही नारायण की अनरथ रूप परै दिखलाय १००
इतना कहिकै लाखनि ऊदन सोये द्वऊ सेज पर जाय ।।
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय १०१
तारा गण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ॥
आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायण भाय १०२
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यश सों रहौ सदा भरपूर १०३
पूरण कीन्ह्यो अब याहीं ते चन्दन बाग केरि सब गाथ ॥
वन्दन करिकै पितु माताके दूनों धरों चरण पर माथ १०४
पूरि तरंग यहाँ सों ह्वैगै तव पद सुमिरि भवानीकन्त ।।
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही मोरि भगवन्त १०५
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई )मुशीनवलकिशोरात्मजवाचूप्रयागनारा-
यणजीकीयाजानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपंडरीकलां निवासिमिश्रवंशोद्भववुधकृपा-
शंकरसूनु पं० ललितामसातचंदनवाटिकायुद्धवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥