पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९५

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पाल्हखण्ड । ५६४ हवै झमेला हमपर तुमपर कैसी करें कनौजीराय ॥ ऐसी सुनिकै लाखनि बोले मानो साँच बनाफरराय ६५ होनी ढहै सो ढहै अब याही ठीक लेउ ठहराय ।। मृत्यु आयगै जब रावणकै तब वनवासगये रघुगय ६६ कोऊ रक्षा तब कीन्हो ना जब मुनिपिया समुन्दरजाय।। ब्रह्मा विष्णु शिव सम्बन्धी इनतेऔर कौन अधिकाय ६७ बिपति समुन्दर पर जब आई तब सवगये तुरत अलगाय॥ त्यहिते सम्मत अब याही है मुरही कूच देउ करवाय ६८ मर्जी होई नारायण की होई स्वई बनाफरराय ।। इतना सुनिक ऊदन बोले साँची कहाँ कनीजीराय ६६ सम्मत ठीको अब याही है दिल्ली चलें तड़ाकाधाय ॥ मर्जी याही नारायण की अनस्यरूप पर दिखलाय १०० इतना कहिक लापनि ऊदन सोये बऊ सेजपर जाय ।। खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ानिशाकोआय १०१ तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ॥ आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण माय १०२ रहे समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।। मालिक ललिते के तबलों तुम यश सो रहौ सदा भरपूर १०३ पूरण कीन्ह्यो अत्र याहीते चन्दन वाग फेरि सबगाथ ॥ वन्दन करिक पितु माताके दूनों धरों चरण पर माथ १०४ पूरि तरंग यहाँ सों द्वैगै तव पद सुमिरि भवानीकन्द ।। राम रमा मिलि दर्शन देवं इच्छा यही मोरि भगवन्त १०५ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई )मुशीनवलकिशोरात्मजवाचूप्रयागनारा- पणजीकीयाजानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपंडरीकलां निवासिमिश्रवंशोद्भववुधकपा- शंगरसूपं ललितामसातचंदनवाटिकायुद्धवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥