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अथ आल्हखण्ड ॥
चन्दन खम्भा का युद्ध वर्णन॥
सवैया ॥
सोहत मुण्डन माल हिये अरु भाल में चन्द्र बिराजत नीके ।
शूल औ शक्ति कृपाण लिये डमरू कर सोहत शम्भुबली के ।।
खातहैं भंग धरे शिरगंग सो नंग फिरै अरधंग सती के ।
जंग जुरे न टरैं ललिते हम ध्यावत चर्ण हैं शम्भु यतीके १
सुमिरन ।।
विपति विदारण जगतारण के दूनों धरों चरणपर माथ ।।
पूर मनोरथ तुमहीं करिहौ स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ १
बल्कल धारे जटा सँवारे मारे वली वीर दशमाथ ।।
सो हैं स्वामी अवध पुरी के लीन्हे धनुपवाण प्रभु हाथ २
अक्षत चन्दन औ पुष्पन सों मानस पूजन परम उदार॥
सो मैं करिकै रघुनन्दन का जावा चहौं जगत के पार ३
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धहीं स्वामी र