पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९६

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अथ भाल्हखण्ड ॥ चन्दनखम्भाकायुद्धवर्णन॥ सवैया ॥ सोहत मुण्डनमाल हिये अरु भाल में चन्द्र विराजत नीके। शूल औ शक्ति कृपाण लिये डमरू कर सोहत शम्भुबलीके। सातहें भंग धरे शिरगंग सो नंग फिर अरधंग सतीके। जंग जुरे न टरै ललिते हम ध्यावत चर्ण हैं शम्भु यतीके ? सुमिरन ।। विपति विदारण जगतारण के दूनों धरों चरणपर माथ। पूर मनोरथ तुमहीं करिहौ स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ ? वल्कल धारे जटा सँवारे मारे वली वीर दशमाथ ।। सो हे स्वामी अवधपुरी के लीन्हे धतुपवाण प्रभु हाथ २ मानस पूजन परम उदार॥ जावा वहाँ जगत के पार ३ उन्हीं गोसइयाँ दीनबन्धहीं स्वामी र अक्षत चन्दन औ पुष्पन सौ सो में करिकै रघुनन्दन का