पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९७

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. । 1 4 आल्हखण्ड। ५६५ कीरति देवो नित दुनिया में राखो मोरि जगत में लाज १ छूटि सुमिरनी गै देवन के शाका सुनो शूरमन क्यार । चन्दनखम्भा ऊदन हैं होई महाभयङ्कर मार ५ अथ कथामसंग ॥ उदय दिवाकर भे पूरब मा किरणन कीन जगतउजियारा। सोय के जागे उदयसिंह जब लागे करन फौज तय्यार ? अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतवरण गजराज ।। घरी अंबारी तिन हाथिनपर बहुतक हौदा रहे विराज २ इक इक हाथी के हौदामा दुइ दुइ भये बीर असवार ।। सजा रिसाला घोड़नवाला आला साठि सहस त्यहिबार ३ झीलमबखतरपहिरिसिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ॥ चढे कनौजी तव भूरी पर ऊदन दुल भे असवार ४ देवा सय्यद वनरसवाले औ जगनायक भये तयार ।। दाढ़ी करखा बोलन लागे विपन कीन चेद उच्चार ५. रणकी मौहरि वाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार ।। पहिल नगाड़ा में जिन वन्दी दुसरे फाँदि भये असवार ६ तिसर नगाड़ा के वाजत खन लाखनि कूचदीन करवाय ।। पार उतरिक श्रीयमुना के दिल्ली शहर गये नगच्याय ७ तीनि अनी कार तहॅ सेनाकी खम्भा तुरत लीन उवराय ।। बारहु खम्मा चन्दनवाले छकरन उपर लीन लदवाय भा खलभल्ला औ हल्ला अति पायो खवरि पिथौराराय ।। धावा कीन्ह्यो उदयसिंहने चन्दन खम्भ लीन उखराय : सुना पिथौरा जब बातें ई दीन्ह्यो वीरभुगन्त पठाय ॥