पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९९

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आल्हखण्ड। ५६८ चार चूकिगे परशू ठाकुर गारयो वीर मुगन्ता ज्ञान ।। चन्दन खम्भा के मुर्चा मा परशू जूझिगये मैदान २३ ड़ा बेड़ा ऊदन मारें सीधा हनें कनौजीराय ।। अगलबगल में जगनायकजी बहु रणशूर ढहावत जाय २४ रानी अगमा के महलन के फाटक उपर कनौनीगय ।। सँग जगनायक ऊदन ठाकुर येऊ गये तड़ाका धाय २५ मुर्चाबन्दी है बिसहिनि में तहँ पर गये पिथौराराय ।। सुनी हकीकति लाखनिराना दारे जाय गये विरझाय २६ बदला लेवे संयोगिनि का तब फिरि धरत्र अगारी पाय॥ लेके डोला अब अगमा का कनउज शहर देय पहुँचाय २७ तौ तौ लड़िका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरों मुड़वाय ॥ तब जगनायक बोलन लागे मानो कही कनौजीराय २८ जैसे जान हम मल्हना को अगमा तैसि हमारी माय ।। यह गति नाहीं क्यहु ठाकुरकी डोला आजुलेय निकराय २६ जितनी फौजें चन्देले की सो सब साथ हमारे भाय ।। हमरो तुम्हरो मुर्चा है साँची सुनो कनौजीराय ३. यामें संशय कछु परि है ना तुमते ठीक दीन बतलाय । पुनिकै वान जगनायक की बोला तुरत बनाफरराय३१ तुमैं मुनासिब यह नाही है मैने भैने सुनो चंदेलेकेर ।। रेतीमान के ये लरिका है नाती वेनचकवे केर ३२ घाट बयालिस पिरथी रोंके तब तुम गये हमारे पास ।। बन्दि छुड़ाई इन मोहवे की काटी तहाँ यमनकी पाश ३३ आजु कनौजी सब लायक है हमरे माननीय शिरताज ।। ॥ तुमहूँ प्यारे जगनायक जी विग्रहकेर नहीं कछुकाज ३४