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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५९९

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आल्हखण्ड। ५९८

वार चूकिगे परशू ठाकुर मारयो वीर मुगन्ता ज्ञान ।।
चन्दन खम्भा के मुर्चा मा परशू जूझिगये मैदान २३
एँड़ा बेड़ा ऊदन मारैं सीधा हनैं कनौजीराय ।।
अगल बगल में जगनायक जी बहु रणशूर ढहावत जायॅ २४
रानी अगमा के महलन के फाटक उपर कनौजीराय ।।
सँग जगनायक ऊदन ठाकुर येऊ गये तड़ाका धाय २५
मुर्चाबन्दी है बिसहिनि में तहँ पर गये पिथौराराय ।।
सुनी हकीकति लाखनिराना द्वारे जाय गये विरझाय २६
बदला लेवे संयोगिनि का तब फिरि धरब अगारी पाॅय ॥
लैकै डोला अब अगमा का कनउज शहर देयँ पहुँचाय २७
तौ तौ लड़िका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरों मुड़वाय ॥
तब जगनायक बोलन लागे मानो कही कनौजीराय २८
जैसे जानैं हम मल्हना को अगमा तैसि हमारी माय ।।
यह गति नाहीं क्यहु ठाकुर की डोला आजु लेय निकराय २९
जितनी फौजैं चन्देले की सो सब साथ हमारे भाय ।।
हमरो तुम्हरो मुर्चा ह्वै है साँची सुनो कनौजीराय ३०
यामें संशय कछु परि है ना तुमते ठीक दीन बतलाय ।।
सुनिकै बातैं जगनायक की बोला तुरत बनाफरराय ३१
तुम्हैं मुनासिब यह नाही है भैने सुनो चँदेलेकेर ।।
रतीभान के ये लरिका है नाती बेनचक्कवै केर ३२
घाट बयालिस पिरथी रोंके तब तुम गये हमारे पास ।।
बन्दि छुड़ाई इन मोहबे की काटी तहाँ यमन की पाश ३३
आजु कनौजी सब लायक है हमरे माननीय शिरताज ।।
तुमहूॅ प्यारे जगनायक जी विग्रहकेर नहीं कछुकाज ३४