पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६०३

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आल्ह खण्ड। ६०२ फिरि फिरि मारें औ ललकारें दोऊ बड़े लड़ेता ज्यान । ऊंचे खाले कायर भागे छोडिकै समर भूमि मैदान ७१ शूर सिपाही ईजति वाले आली खानदान के ज्यान ।। वदि बदि मारें तलवारी सों अपने धरे गदोरी पान ७२ आदि भयङ्कर को चढ़वैया यहु महराज पिथोराराय ।। चौंड़ा धाँधू को ललकारा चन्दन तुरत लेउ उल्दाय ७३ जान न पावें मोहवे वाले सबकी कटा देउ करवाय॥ सुनिक बातें महराजा की बोला तहाँ बनाफरराय ७४ तुम्हें मुनासिब यह नाहीं है ओ महराज बीर चौहान ।। जैसे नौकर चन्देले के तैसे आप करो परमान ७५ नहीं बरोबरि कोउ तुम्हरे है ज्यहिपर आप चढ़े महराज ।। बेला बेला दुहुँ तरफाते ज्यहिते भये दुःखके साज ७६ हमें पठायो है वेलाने चन्दन लेन हेतु महराज ।। पहिले बगिया को कटवायो पाछे कीन भयङ्कर काज ७७ सत्ती होई चंदेले सँग राखी दुहँ कुलन की लाज। हम समुझावा भल बेला को की तुम करो मोहोवे राज ७८ अनरथ भायो मन वेला के खम्भन हेतु दीन पठाय।। ना चढ़िआये जयचँद राजा ना चढ़िये चंदेलेराय ७६ तुम्हें मुनासिब अब याही है राजन कूच दे करवाय ।। इतना सुनिकै महराजा त] हाथी तुरत लीन लौटाय ८० भाग्यो लश्कर फिरि पिरथी का सबदलतितिर वितिर लैजाय ॥ लादि के खम्भा तहँ छकरन में लाखनि कूचदीनकरवाय ८१ पार उतरि के श्री यमुना के तम्बुन फेरि पहूंचे आय ॥ खेतलूटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाकोआय ८२