फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं दोऊ बड़े लड़ैता ज्वान ।।
ऊंचे खाले कायर भागे छोंड़िकै समर भूमि मैदान ७१
शूर सिपाही ईजति वाले आली खानदान के ज्वान ।।
बढ़ि बढ़ि मारैं तलवारी सों अपने धरे गदोरी प्रान ७२
आदि भयङ्कर को चढ़वैया यहु महराज पिथौराराय ।।
चौंड़ा धाँधू को ललकारा चन्दन तुरत लेउ उल्दाय ७३
जान न पावैं मोहबे वाले सबकी कटा देउ करवाय ॥
सुनिकै बातैं महराजा की बोला तहाॅ बनाफरराय ७४
तुम्हैं मुनासिब यह नाहीं है ओ महराज बीर चौहान ।।
जैसे नौकर चन्देले के तैसे आप करो परमान ७५
नहीं बरोबरि कोउ तुम्हरे है ज्यहिपर आप चढ़े महराज ।।
बेला बेला दुहुँ तरफाते ज्यहिते भये दुःख के साज ७६
हमैं पठायो है बेला ने चन्दन लेन हेतु महराज ।।
पहिले बगिया को कटवायो पाछे कीन भयङ्कर काज ७७
सत्ती होई चंदेले सँग राखी दुहूँ कुलन की लाज ।।
हम समुझावा भल बेला को की तुम करो मोहोबे राज ७८
अनरथ भायो मन बेला के खम्भन हेतु दीन पठराय ।।
ना चढ़ि आये जयचँद राजा ना चढ़ि अये चँदेलेराय ७९
तुम्हें मुनासिब अब याही है राजन कूच देउ करवाय ।।
इतना सुनिकै महराजा तहॅ हाथी तुरत लीन लौटाय ८०
भाग्यो लश्कर फिरि पिरथी का सब दल तितिर बितिर ह्वैजाय ॥
लादि कै खम्भा तहँ छकरन में लाखनि कूच दीन करवाय ८१
पार उतरि कै श्री यमुना के तम्बुन फेरि पहूंचे आय ॥
खेत छूटिगा दिन नायक सों झंडा गड़ा निशा को आय ८२
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आल्हखण्ड। ६०२
