पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६०४

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चन्दनखम्भाकामदान । ५९ तारागण सव चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ।। आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो पागनरायणभाय ८३ रहै समुन्दर में जबलों जल जबलो रहैं चन्द औ सूर ॥ मालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रही सदाभरपूर ८४ माथ नवावों पितु माता को जिन बल पूरिभई यह गाथ ॥ तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ ८५ माथ तुम्हारो है दुनिया मा दूसर नहीं हमारो नाथ ॥ सत्य शपथ यह धर्म कर्म की स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ ८६ सुमिरि भवानी शिवशंकर को ह्याँते करों तरँग को अन्त । राम रमामिलि दर्शन देव इच्छा यही भवानीकन्त ८७ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आईई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण जीकीआज्ञानुसार उनाममदेशान्तर्गत पंडरीकतानिवासि मिश्रबंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृतचन्दनखम्भयुद्ध वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥ चन्दनखम्भाकामैदानसमास ।। इति ॥