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चन्दन खम्भा का मैदान । ६०३
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ।।
आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायणभाय ८३
रहै समुन्दर में जब लों जल जब लों रहैं चन्द औ सूर ॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदाभरपूर ८४
माथ नवावों पितु माता को जिन बल पूरिभई यह गाथ ॥
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ ८५
माथ तुम्हारो है दुनिया मा दूसर नहीं हमारो नाथ ॥
सत्य शपथ यह धर्म कर्म की स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ ८६
सुमिरि भवानी शिवशंकर को ह्याँते करों तरँग को अन्त ।।
राम रमामिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त ८७
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आईई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण
जीकीआज्ञानुसार उनाममदेशान्तर्गत पंडरीकतानिवासि मिश्रबंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृतचन्दनखम्भयुद्ध
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥
चन्दन खम्भा का मैदान समाप्त ।।
इति ॥