सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आल्हखण्ड। ६०६

तुम्हैं मनावैं औ ध्यावैं हम गावैं सदा तुम्हारी गाथ ॥
यह वरपावैं गणनायक जी दर्शन देयँ मोहिं रघुनाथ ४
छूटि सुमिरनी गणनायक कै शाका सुनो शूरमन केर ॥
सत्ती होई बेला रानी ठानी युद्ध पिथौरा फेर ५

अथ कथाप्रसंग ।।


खम्भ आयगे जब चन्दन के बेला करन लागि अनुमान ॥
मोहबा दिल्ली के डाँड़े पर हमरो होय सती अस्थान १
यहै बिचारत मन धारत सो आरत हृदय भई अधिकाय ॥
तबलों लाखनि को सँग लैकै आये तहाँ बनाफरराय २
बेला बोली तब ऊदन ते मानो साँच लहुरवाभाय ॥
मोहबा दिल्ली के डाँड़े पर हमरो सरादेउ रचवाय ३
इतना सुनिकै ऊदन ठाकुर चन्दन तहाँ दीन पहुँचाय ॥
चारि चह्वद्दी के डाँड़े पर बेला सरा दीन रचवाय ४
कलउज मोहबे की फौजैं सब ऊदन‌ तुरत लीन सजवाय ।।
सरा रचायो जहँ बेला का सबदल दीन्ह्यो तहॉ टिकाय ५
जितनी रैयति परिमालिक कै देखन हेतु गई सब आय ।।
बेला रानी त्यहि औसर मा भूपण वसन सजे अधिकाय ६
को गति बरणै तहँ बेला कै पोड़श पूरकीन श्रृंगार ।।
लाश संगलै चन्देले की सरपर गई सनी त्यहिबार ७
गाहरिकारा ह्याँ दिल्ली मा राजै खबरि जनाई जाय ।।
खबरि पायकै पृथीराज ने अपनी फौज लीन सजवाय ८
को गति बरणै त्यहि समया कै मानो इन्द्र अखाड़े जाय ।।
आदिभयङ्कर के ऊपर चढ़ि मनमें शम्भु शिवापद ध्याय ९
चौंड़ा धाँधू बीर भुगन्ता लैकै कूच दीन करवाय ।।