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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६०८

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बेला सती अन्त मैदान । ६०७

भारी लश्कर महराजा का गर्जत चला समर को जाय १०
थोड़े अरसा मा महराजा आये सरापास नगच्याय ॥
बाजैं बाजा ह्याँ सत्ती के हाहाकार शब्दगा छाय ११
चला पिथौरा हाथी परते औ महराज कनौजीराय ।।
बंश चँदेले के जो होवै सो सर देवै आगि लगाय १२
जायँ नगीचे नहिऍ ऊदन अब हैॅ अकुलीन बनाफरराय ।।
सुनिके चातै पृथीराज की बोला तुरत लहुखाभाय १३
हमे आज्ञा है बेला के की सरदेवो आगिलगाय ।।
इतना कहिकै उदयसिंह ने दीन्ह्यो चिता तुरत दँदकाय १४
यह गति दीख्यो पृथीराज ने तुरतै हुक्म दीन फरमाय ॥
जान न पावैं मोहबे वाले सब के देवो मूड़ गिराय १५
हुकुम पायकै पृथीराज का चौड़ा धाँधू उठे रिसाय ॥
बीर भुगन्ता गर्जन लाग्यो मारन लाग तड़ाका धाय १६
सय्यद देवा ऊदन ठाकुर इनहुन खैंचि लीन तलवार ॥
को गति वरणै त्यहि समया कै लागी होन भड़ा भड़ मार १७
हौदा होदा यकमिल ह्वैगे घोड़न भिड़ी रानमें रान ।।
पहिया रथ के रथमा भिड़िगे तीरन भिड़िगे तीर कमान १८
मर मर मर मर ढालैं ब्वालैं खन खन तूण वाण चिल्लायँ ।।
सन् सन् सन् सन् गोली बरसैं कायर भागैं समर पराय १९
घम् घम् घम् घम् बजैं नगारा मारा मारा परै सुनाय ।।
झल्झल्झल्झल झीलम झलकैं नीलम रंग परेॅ दिखराय २०
चम् चम् चम् चम् तेगा चमक दमकैं छुरी कटारी भाय ।।
कोगति वरणै त्यहि समया कै अद्भुत समर कहा ना जाय २१
फिरै भुशुण्डा बिन शुण्डा के रूण्डा करैं खूब तलवार ।।