पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६११

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आल्हखण्ड । ६१० छुरी कटारी भाला बरछी होवे कड़ाबीन की मार ४६ तीर तमंचा गुर्ज चलावें दोऊ समर शूर त्यहि बार ॥ वार चूकिगे धाँधू ठाकुर मारा कनउज के सरदार ४७ धाँधू जूझ्यो जब मुर्चा में आयो तुरत पियोगराय ।। आदिभयङ्करज्यहि दिशिदात्रै त्यहिदिशिहटतफौजसब नाय ४८ को गति बरणे पृथीराजे की नाहर समरधनी चौहान ।। ज्यहि दिशि दाबै समर भूमिमें त्यहिदिशिहोतजातमैदान४६ सुफना वोल्यो ह्याँ लाखनि ते श्री महराज कनौजीराय ।। आदिभयकर दावे आवे यहु महराज पिथौराराय ५० कोऊ सहायक अब तुम्हरो ना स्वामी आप एक यहिकाल ।। इत उत फिरिकै चहुँदिशि देखा नहिकोउदेखिपरै महिपाल ५१ कर आतमा की रक्षा नर धन औ स्त्री संग विहाय ॥ धन सों स्त्री की रक्षा कर यह माद नीति कीआय ५२ त्यहिते तुमका समुझाइत है ओ महराज कनौजीराय ॥ इतना सुनिक लाखनि बोले सुफना काह गये बौराय ५३ कहा. न माना चंदेलेका हटका मातु हमारी आय ।। अब नहिं भाग हम मुर्चा ते चहु तन धनीरउडिजाय ४ रही न देही रामचन्द्र के रहि नहिंगये कृष्ण महराज ॥ यशै इकेले वाकी रहिगा सो कस तजे समरमें लाज५५ रही न देही क्यहु मानुष की सबजग नाशवान दिखलाय।। त्यहिते हाथी जहें पिरथी का सुफना चलौ तहाँपर धाय ५६ प्राण निछावरि रण करि देवे तो यशरही जगत में छाय।। जो अब भागें समर भूमि ते कायर कहै लोक सवगाय ५७ सुनिके बातें लखराना की सुफना हाथी दीन बढ़ाय ॥