पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८ आल्हखण्ड । ६१२ घर घर दिल्ली को लुटवे तब छाती का डाह बुताय ७० इतना कहिक लाखनिराना तुरतै लीन्यो तीर उठाय ।। खेंचि कमनियांते छाँड़त भे गौरा पारवती को ध्याय ७१ श्रावत दीख्यो शर लाखनिको राजा काटि तड़ाका दीन । बड़े क्रोधसों पृथ्वीराजा दूसर वाप हाथमें लीन ७२ शर संघान्यो बड़े वेगसों मारयो तुरत पिथौराराय ।। खण्डन कीन्ह्यो त्यहि लखराना आपो मास्यो तीर चलाय ७३ ताहि पिथौरा खण्डन करिक यकस मारे वाण रिसाय॥ तिनको खण्डन लाखनिकीन्यो राजा गये मनै शर्माय ७४ यहु महराजा कनउज वाला आला वंश चंदेलाराय॥ धेला एको ज्यहि डर नाहीं हाथिन हेला दीन गिराय ७५ बड़ बड़ मेला रजपूतन के रणमा लाखनि दीन हाय ॥ फूल चमेला औ वेला जस तस अलवेला कनौजीराय ७६ उ सुगंधैं जस बेला में - तस यशगयो जगतमें छाय ।। बाण लागि गा लखराना के होदा उपर गये मुरझाय ७७ जूझि कनौजी गे खेतन में सुमिरिक मित्र बनाफरराय ।। कड़के धड़क औ फड़के अति मेघा आसमान थहराय ७८ प्रलयकाल की बेला आई जब मरिगये कनौजीराय ॥ ऐसे अशकुन के देखत खन ऊदन गये सनाकाखाय ७६ चित्त न लागै कछु मुर्चा में व्याकुल सुमिरि कनौनीराय।। यहां चौड़िया धरि धरि धमकै ऊदन लेवें वार वचाय ८० हाथ चौड़िया पर छाँई ना व्याकुल चित्त रहे अकुलाय॥ तहिले पावन इक चौड़ाते लाखनि हाल बतावाआय ८१ मुना बनाफर उदयसिंह यह की मरिगये कनौजीराय ।।