पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६१६

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बेलासताअन्तमैदान । ६१५ ग्यारह लंघन परिमालिक करि सुरपुर गये तडाका धाय १०६ सत्ती कैकै रानी मल्हना अपनो दीन्यो प्राण गँवाय ॥ मोहवा दिल्ली औ कनउज में मानोंगिरी गाजभरराय १०७ चने चबुतरा बहु सत्तिन के गैरन औरन पर दिखाय ।। बड़ बड़ राजन की महरानी रणमाखाकवटोरेनिआय १०८ बरे बचाये महभारत के या बंश अस्त भे भाय ।। जेठ चतुर्दशि वनइस छप्पन अबलों सुदी पक्ष दर्शाय १०६ ललिते आल्हा को पूरण करि पूरणमासी चहें अन्हाय ॥ पै यह वादा है कलियुग का सोनहिं ठीकठाक ठहराय ११० आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायण भाय ।। हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललितकहतकथाकसगाय१११ रहे समुन्दर में जबलों जल जबलों रहँ चन्द औ सूर॥ मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहीं सदा भरपूर ११२ माथ नवाबों पितु माता को जिनबल पूरि भई यह गाथ ।। मालिक स्वामी अरुप्सरबस तुम जगमें एक रामरघुनाथ ११३ कृपा न करतेउ रघुनन्दन जो तो यह पूरि करत को गाथ ।। माता पितुमा सचराचर में व्यापकतुम्हीरामरघुनाथ ११४ तुम्ही रवैया हो दुर्वल के स्वामी रामचन्द्र महराज ।। कृपा तुम्हारी जब जस होती तवतस होत जगतगेंशज ११५ अब महरानी सुखदानी जो हमरी माननीय शिरताज ।। सब गुणखानी विक्टोरियारानी राखें सदा जगत में लाज ११६ जिन बल छाजत बल हमरो है राजत राजनीति नितराज ॥ जोनहिं अनुचित चल दुनियामें अब महरानी सब सुखदानी युग युगं अटलकरें यह राज ।। 4 . ram