पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६२

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माडोका युद्ध । ५७ की खुपरी खुपरिन मिलि जैहैं की पै मिली बाप का दाउँ ।। जो नहिं जावों गढ़माड़ो को ऊदन नाहि कहावों नाउँ ८० गलखे बोले तव देवा ते हमको शकुन देउ वतलाय ॥ हारि हमारी माड़ो है है की हम जितब करिंगाराय ८१ लैकै पोथी समरसार की देवा शकुन विचारन लाग ।। यजुर्वेद ऋग्वेद अथर्वण जानै सामवेद बड़भाग ८२ शकुन हमारो यों बोलत है माड़ो काम सिद्धि वैजाय ॥ मूड़ मुड़ावो योगी के माड़ो चलो सबै जनभाय ८३ सुनिक बातें ये देवा की मलखे थान लीन मँगवाय॥ रंग रंगायो ते गेरू के गुदड़ीतुरतलीन सिलवाय ८४ वइसपर्त की सिली गुदड़ियाँ जिनमें छिपैं ढाल तलवार । आल्हा ऊदन मलखे - देवा सय्यद बनरस का सरदार ८५ पांचों मिलिकै सम्मत कैकै योगी भेष लिह्यनि फिरिधार। कड़ा सूबरण के हाथे मा कानन कुंडल करें बहार ८६ हाथ सुमिरनी तुलसी वाली तनमा लीन्ह्यो भस्म रमाय ॥ मलखे लीन्ह्यो इकतारा को आल्हा डमरू लियो उठाय८७ लीन सरंगी मीराताल्हन देवा खेजड़ी रहा बजाय ॥ बजे बसुरिया बघऊदन की शोभा कही बूत ना जाय ८८ राग छतीसो गावन लागे एक ते एक शूर सरदार ।। सुरति बिहागर जयजयवन्ती ठुमरी टप्पा और मलार ८६ धुरपद गावँ औ तिल्लाना तोर गजल पर्ज पर तान ।। झूमि भूमिकै सारंग गावें करिकै रामचन्द्र को ध्यान ६० मलखे बोले तब ऊदन ते तुम सुनि लेउ बनाफरराय ।। पहिले माता द्वारे चलिये' तहपर अलख जगावे जाय ६१