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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६५

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आल्हखण्ड। ६०

सवैया॥

तव पद प्रेम बढ़ायों नितै अब जावों कहाँ मोहिं देहु बताई।
सूझत और न ठौर कहूं तजिकै तव चरणन की सेवकाई॥
भाई औ बन्धु सहाई कोऊ नहिं देखि परो तुमहीं रघुराई।
ललिते अबआशनिराशकर क्यों भूलिगयों प्रभुकी प्रभुताई १

सुमिरन॥


रामको ध्यावों औलछिमनको बेटा अंजनि को हनुमान॥
बालि के अंगद तुमका ध्यावों लंका किह्यो घोर घमसान १
मान न राख्योक्यडुनिश्चरको रोप्यो पैर सभा में जाय॥
मेघनाद सम कोटिन योधा तुम्हरो पैर न सके हिलाय २
दानिन ध्यावों वलि हरिचन्दै कुंतीपुत्र करण सरदार॥
इन्द्रहुआये ज्यहि द्वारे में औ यश सुनिकै परमउदार ३
अब मैं ध्यावों सुत गंगा को भीषम जोन शूर सरदार॥
टारि प्रतिज्ञा दीन कृष्णकी करिकै बड़ी भयंकर मार ४
कहौं सपूती शिरीकृष्ण की जिन गोबर्द्धन लीन उठाय॥
सात दिनालों मेघा बरसे झम २ हहरि २ हहराय ५
वई छँगुनियांपर गिरिधारे ठाढ़े रहे कृष्ण महराज॥
लाज रखया सोइ स्वामी हैं हमपर कृपाकरें ब्रजराज ६
छूटि सुमिरनी गय देवन कै शाकासुनो शूरमन क्यार॥
ऊदन जैहैं गढ़माड़ो को ह्वैहैं फौज सबै तय्यार ७

अथ कथाप्रसंग॥


मुर्गा बोले सब गांवन में पक्षी जागिपरे त्यहि काल॥
शब्द चहचहा बोलन लागे जागा मोहबे का नरपाल १
आल्हा ऊदन मलखे देबा जागा बनरस का सरदार॥