सय्यद सुमिर्योबिसमिल्ला को मलखे सुमिर्यो नन्दकुमार २
वबिध्यबासिनी आल्हासुमिर्यो देबा रह्यो रामपद ध्याय॥
देवी शारदा मइहरवाली सुमिरनलाग लहुरवाभाय ३
चरण शरण में हम तुम्हरी हैं दाया करो शारदामाय॥
जीति कै अइहौ जो माड़ोते सोने छत्र चढ़ैहौं आय ४
लज्जा राख्यो ओ महरानी मैं हौं सदा तुम्हारो दास॥
नहीं भरोसा निज भुजबलका केवल एक तुम्हारी आस ५
ध्याय शारदा को ऊदन फिरि दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
किह्यो दण्डवत महरानी की जो गाढ़े मा होयँ सहाय ६
ऊदन बोल्यो फिरि आल्हासों दादा मानौ कही हमार॥
क्षण क्षण बीतै जो मोहबे मा सो हम जानैं बर्ष हजार ७
जल्दी चलिये राजभवन में जहँ पै बैठि रजापरिमाल॥
बिदा मांगिकै महराजा सों दादा चलन चही ततकाल ८
सुनिकै बातैं बघऊदन की आल्हा लीन ढाल तलवार॥
उठिकै ठाढ़े मे जल्दी सों सँगमें बनरसका सरदार ९
सभामें पहुँचे परिमालिक की पाँचो ठाढ़ भये शिरनाय॥
बोले आल्हा सों परिमालिक काहे काहे खड़े बनाफरराय १०
सुनिकै बातैं परिमालिक की आल्हा कही हकीकत गाय॥
भई लहुरवा यहु बिगराहै माड़ो लेई बापका दाँय ११
सुनिकै बातैं ये आल्हा की राजा गयो सनाकाखाय॥
बोलि न आवा परिमालिकसे मुँहका बिरा गयो कुम्हिलाय१२
बड़ी उदासी मुखपर छाई शिरसों गिरा छत्र भहराय॥
सोचनलाग्योपरिमालिकफिरि मन ना कछू ठीक ठहराय १३
बहुतसोचिकैपरिमालिक फिरि बोल्यो सुनो उदयसिंहराय॥
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माड़ोका युद्ध। ६१
