कहाँ ते आयो औ कहँ जइहौ आपन भेद देउ बतलाय ८४
सुनिकै बातैं दरवानी की बोला तुरत वनाफरराय॥
हमतो आवें बङ्गालेते आगे हिंगलाज को जायँ ८५
करब याँचना हम महलन में फाटक हमैं देउ खुलवाय॥
सुनिकै बातैं ये योगिन की बोला द्वारपाल हर्षाय ८६
खबरि सुनावैं महराजा को तुमसे कहैं फेरि हम आय॥
कहि हरकारा यह दौरतभा ड्योढ़ी तरे पहूँचा जाय ८७
बेटा अनूपी का जम्बानृप ताको खबरि सुनाई जाय॥
आये योगी हैं द्वारे पर शोभा कही बूत ना जाय ८८
सवैया॥
देख म पाँच लखइमाँ सांच सुनो नृप यांचि यही हम चाहें।
पाँच के साथ मिले हम सांच पवैं बर यांचि अबैं अवगाहैं॥
देश बिदेश लखे नहिं पांच जो रूप में सांच सचे सच आहैं।
सांच कभी ललितेनहिं यांच चहै दशपांच मनै अरसाहैं ८९
सुनिकै बातैं हरकारा की बोला माड़ो का सरदार॥
जल्दी लावो तुम योगिन को शोभा लखी तासु की द्वार ९०
सुनिकै बातैं महराजा की धावन चला तड़ाका धाय॥
खबरि सुनाई सब योगिन को लय दरवार पहूँचा जाय ९१
बइसपर्त की गुदड़ी लीन्हे ज्यहिमाँ परी ढाल तलवार॥
कुंडल सोहैं भल कानन में शिरपर टोपी करै बहार ९२
सोहै मुमिरनी कर दहिने में आल्हा डमरू रहे बजाय॥
बजै सरंगी भल देवा कै सय्यद खँझरी रहा उड़ाय ९३
कर इकतारा मलखे लीन्हे ऊदन वंशी रहे बजाय॥