पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/७३

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आल्हखण्ड। ६८ कहाँ ते आयो ओ कह जइहाँ आपन भेद देउ बतलाय ८४ मुनिक बातें दरखानी की बोला तुरत वनाफरराय ।। हमतो आवें बङ्गालेते आगे हिंगलाज कोजायँ ८५ करब यांचना हम महलन में फाटक हमें देउ खुलवाय ।। ॥ सुनिक बातें ये योगिन की बोला द्वारपाल हाय ८६ खबरि सुना- महराजा को तुमसे कहें फेरि हम आय॥ कहि हरकारा यह दौरतभा ध्योदी तरे पहूँचा जाय ८७ वेटा अनूपी का जम्बानृप ताको खबरि सुनाई जाय ॥ आये योगी है दारे पर शोभा कही वृत ना जाय 4 सवैया॥ देख म पाँच लखइमाँ सांच सुनो नृप यांचि यही हम चाहें। पाँच के साथ मिले हम सांच पर्वं बर यांचि अ● अवगाहें। देश बिदेश लखे नहिं पांच जो रूप में सांच सचे सच आहे। सांच कभी ललितेनहिं यांच चहै दशपांच मनै अरसाह 58 सुनिक बातें हरकारा की बोला माड़ो का सरदार॥ जल्दी लावो तुम योगिन को शोभा लखी वासु की द्वार ६० सुनिक बातें महराजा की धावन चला तडाका धाय । खबरि सुनाई सव योगिन को लय दखार पहूँचा जाय ६१ घइसपत की गुदड़ी लीन्हे ज्यहिमाँ परी ढाल तलवार ॥ कुंडल सोह भल कानन में शिरपर टोपी करै बहार ६२ सोहै मुमिरनी कर दहिने में आल्हा डमरू रहे बजाय ॥ बजे सरंगी भल देवा के सय्यद सझरी रहा उड़ाय ६३ कर इकतारा मलखे लीन्हे अदन वंशी रहे बजाय ।