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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/७५

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आल्हखण्ड। ७०

बड़ी देर भइ हत्यारी तोहिं कात्वरिअक्किलगईहिराय १०५
क्यहिके महलन में यटकीरहि सांची सांचु देइ बतलाय॥
सुनिकै बातैं महरानी की बांदीहाथजोरिशिरनाय १०७
कही हकीकति सब योगिनकै शोभा बार बार गयगाय॥
कीतो आये इन्द्रलोक ते की वै गये स्वर्ग ते आय १०८
शोभा बरणै को योगिनकै रानी कही बूत ना जाय॥
सुनिकै बातैं ये बांदी की तुरतैहुकुम दीन फरमाय १०९
जल्दी लावो तुम योगिनको दर्शन मोहिं देउ करवाय॥
मोरि लालसा यह डोलति है योगीजायँ महलमेंआय १९०
सुनिकै बातैं ये रानी की बांदी चली हवा के साथ॥
मता अनूपी के महलन में योगिनजायनवायोमाथ १११
कह्यो हकीकति सब रानी की बांदी बार बार शिरनाय॥
मता अनूपी तब बोलत भै योगीचरणनशीशनवाय ११२
घर घर मांगे कछु बनिहैना कुशलामहल चले तुम जाउ॥
बहु धन पैहौ त्यहि महलन में बैठे चहौ जन्मभर खाउ ११३
जैसी औषधि रोगी चाहैं बैदन तैसी दई बताय॥
बड़ी खुशाली भै ऊदन के जनुमिलिगयोबापकादायँ ११४
चले पछोड़ी सब योगी फिरि बांदी चली अगाड़ी जाय॥
को गति बरणै तिन योगिनकै जनु गे देवलोक ते आय ११५

सवैया॥


देखत योगिन रूप अनूप चले नर नारि सबै पुर केरे।
आये मनो मघवापुरते यह बात करैं वै सबै मिलिकेरे॥
हेरे तेई नहिं फेरे फिरैं बड़भाग कही ले रहे कोउ नेरे।
योगिन योगिन भेष लखैं ललिते ते कहैं बड़भागहैं मेरे ११६