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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/७६

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माड़ोका युद्ध। ७१

रय्यत मोही गढ़ माड़ो की काहू धरा धीर ना जाय॥
पहिली ड्योढ़ी योगी पहुँचे बांदी बोली शीश नवाय ११७
तनुकबिलमिजाउतुमड्योढ़ीपर भीतर खबर सुनावों जाय॥
सुनिकै बातैं ये बांदी की योगीठाढ़ भये हरिध्याय ११८
घोड़ पपीहा तहँ बांधो थो हाथी खड़ा महोबे क्यार॥
देखिकै दोऊ रोवनलागे आल्हाबाँडिदीनडिंडकार ११९
देखि तमाशा ऊदन बोले आल्है बार बार शिरनाय॥
काहे रोये तुम ददुवा हौ सांचे हाल देउ बतलाय १२०
सुनिकै आल्हा बोलन लागे हमरे सुनो लहुरवा भाय॥
हाथी घोड़ा दोउ मोहबे के इनका देखि मोहगाआय १२१
सुनिकै बातैं ऊदन बोले दादा हुकुम देउ फरमाय॥
हाथी घोड़ा दोउ लैजावैं औ फौजनमें पहूँचैजाय १२२
सुनिकै बातैं मलखे बोले ऊदन अक्किल गई हेराय॥
चोरी चोराते ले जैहौ कलियुग चोरकहैहौजाय १२३
दाग लागि जाय रजपूती माँ औ सब क्षत्रीधर्म नशाय॥
वादिन लीन्ह्यो हाथी घोड़ा जादिनलिह्योबापकादायँ १२४
तबलौं बांदी दौरत आई योगिन माथ नवायो आय॥
आगे बांदी पाछे योगी दुसरे फटक पहूँचे जाय १२५
तहँना बिरवा रह बरगदका छाया घनी रही तहँ छाय॥
योगी बैठे त्यहि छाया में मनमें श्रीगणेशकोध्याय १२६
देशराज औ बच्छराज ये दोऊ भाय बनाफरराय॥
पत्थर कोल्हुन में पिरवायो जम्बै पूत करिङ्गाराय १२७
खुपड़ी टाँगी त्यहि बरगद में औरन बोलि बोलि रहिजायँ॥
लड़िका ह्वैगै बैरागी हैं कोधौं ल्यई हमारो दायँ १२८