सीढिन सीढिन सों ऊपर गे पहुँचे रंगमहल में जाय॥
खिरकी लागीं मलयागिरि की शोभा कही बूत ना जाय १४१
बैठि कबूतर हैं छज्जा पर कहुँ कहुँ नाचिरहे हैं मोर॥
सुवा पहाड़ी कहुँ पिंजरनमाँ मैना बोलि रहे अतिजोर १४२
राजा जम्बा की महरानी खिरकिन परदा दीन डराय॥
पतले कपड़ा के परदा हैं योगी तासों परैं दिखाय १४३
चढ़ाउतारू भुजदण्डै हैं जिनका सिंहबरण करिहायँ॥
छाती चौड़ीहै योगिनकै नैनन रही लालरी छाय १४४
रूप देखिकै तिन योगिन का रानी गई सनाका खाय॥
डाटन लागी तब बाँदी को बाँदी काह गई बौराय १४५
ऐसे योगी हम दीखे ना ये कोउ राजन केर कुमार॥
तुइ छल कीन्हे म्बरे साथमाँ बाँदी पेट फरहौं त्वार १४६
योगी बोले तब रानीते रानी भर्म देउ सब छाँड़॥
बाप हमारे बारे मरिगे माता बरी बैस भै राँड़ १४७
देश हमारे सूखा परिगा माता ब्यँचा योगिन के हाथ॥
रूप विधाता हमका दीन्ह्यो पै हम भजैं सदारघुनाथ १४८
इतनी सुनिकै रानी बोली ओ योगिनके राजकुमार॥
कहाँते आयो औ कहँ जैहौ कहँ है देश रावरे क्यार १४९
कड़ा सूबरण के क्यहि दीन्हे गुदड़ी कौन दीन बनवाय॥
सुनिकै बातैं ये रानी की मलखे बोले बचन बनाय१५०
देश हमारो बंगालो है औ हम हिंगलाजको जायँ॥
राजा जयचँद कनउज वाला ड्योढ़ी मँगी तासुकीमाय १५१
मोहित ह्वैगा सो योगिनपर गुदड़ी तुरत दीन बनवाय॥
कड़ा सूबरण के अपने कर योगिन स्वईदीन पहिराय १५२
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माड़ोका युद्ध। ७३
