पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/७८

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माडोका युद्ध । ७३ २५ सीढिन सीढिन सों ऊपर गे पहुँचे रंगमहल में जाय । खिरकी लागी मलयागिरि की शोभा कही बूत ना जाय१४१ बैठि कबूतर हैं छज्जा पर कहुँ कहुँ नाचिरहे हैं मोर ॥ सुवा पहाड़ी कहुँ पिंजरनमाँ मैना बोलि रहे अतिजोर १४२ राजा जम्बा की महरानी खिरकिन परदा दीन डराय॥ पतले कपड़ा के परदा हैं योगी तासों पर दिखाय १४३ चढ़ाउतारू भुजदण्डै हैं जिनका सिंहबरण करिहायँ ।। छाती चौड़ी है योगिनकै नैनन रही लालरी छाय १४४ रूप देखिकै तिन योगिन का रानी गई सनाका खाय ।। डाटन लागी तब बाँदी को बाँदी काह गई बौराय १४५ ऐसे योगी हम दीखे ना ये कोउ राजन केर कुमार ॥ तुइ छल कीन्हे म्बरे साथमाँ बाँदी पेट फरहौं त्वार १४६ योगी बोले तव रानीते रानी भर्म देउ सब छाँड़ ॥ बाप हमारे बारे मरिगे माता वरी बैस भै राँड़ १४७ देश हमारे सूखा परिंगा माता व्यँचा योगिन के हाथ॥ रूप विधाता हमका दीन्यो पै हम मजै सदारघुनाथ १४८ इतनी सुनिकै रानी बोली ओ योगिनके राजकुमार !! कहाँते आयो औ कह ही कह है देश रावरे क्यार १४६ कड़ा सूबरण के क्यहि दीन्हे गुदड़ी कौन दीन बनवाय ॥ सुनिक बातें ये रानी की मलखे वोले बचन बनाय१५० देश हमारो बंगालो है औ हम हिंगलाजको जायँ ।। राजा जयचंद कनउज वाला ड्योढ़ी मँगीतासुकीमाय १५१ मोहित द्वैगा सो योगिनपर गुदड़ी तुरत दीन वनवाय ॥ कड़ा सूबरण के अपने कर योगिन स्वईदीन पहिराय १५२