पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/८३

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आल्हखण्ड ७८ हम सुखपावें इन योगिन सँग चाही भीख मागिकै खायें ३५ मतयीं बोली का तुम बोलो जो यह लिखा होत कार ।। हमहूं होइत क्यहु योगी घर तब ये होते मोरि भतार ३६ अठयीं बोली का तुम बोलो याही लिखा रहै कतार । नैनन देखें मन सों मोहे वाको जानो पूर भतार ३७ नवयीं बोली का तुम बोलो तुम्हरे खाउँ पूत औ भाय । तुम्हरे सबके ई पति होवे हमका कौन दई लैजाय ३८ दशयीं बोली तब रिस करिकै राँडो अबना करो चवाउ । देखो तमाशा तुम योगिन का बातन काह घरै लैजाउ ३६ सुनिक वातै त्यहि दशयों की सखियां सबै गई शरमाय ।। जितनी नारी गढ़माड़ो की सोयोगिन पर गईं लुभाय ४० दिह्यो रूपैया केहु योगिन का केहू दीन मोतिन का हार ॥ रानी कुशला वैरागिन को तुरतै दीन नौलखाहार ४१ चलिमे योगी तब महलन ते फाटक उपर पहूँचे जाय॥ वेटी विजैसिनि तहँ जल्दी सों ऊदन पास पहूँची आय ४२ परिक बाहू दोउ ऊदन की औ यह बोली वचन सुनाय॥ में पहिचानति वहिं ऊदन है नाहक डारयो मूड़ मुड़ाय ४३ योगीके बालक तुम आहिवना आहिव देशराज के लाल ॥ जल्दी चलिदे म्बरे महलन में नाहीं तोर पहूँचा काल ४४ सुनी विजैमिनि की ई बातें बोला तुरत लहुरखा भाय ।। कॉना दीख्यो तुम ऊदन का साँचे हाल देउ बतलाय ४५ मुनिक बाते बघऊदन की बोली तुरत विजैसिनि वैन ।। अभई लड़िका जो माहिल का देखा तासु व्याह में नैन ४६ हमहूं न्याने गई सिरउँज माँ तह तुम गये वराती भाय ॥