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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/८७

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आल्हखण्ड। ८२

जैसि रागिनी मलखेगावैं देवा तैसे देय बजाय ८३
बजै बॅसुरिया भल ऊदनकी थेई थेई रहे मचाय॥
ताताथेई ताताथेई मुखसों बोलैं अँगुरिन भाववतावतजायँ ८४

सवैया॥


मोहिगयो माड़व शिरताज सो राजके काज सबै विसराये।
तानके वान नथा करिया अरिऊपर चित्तको सोउ लुभाये॥
होनी चहै सो होन भलीविधि ज्ञान औ बुद्धि न होत सहाये।
तानके वानलगैं मलखानके ज्वानगिरैं ललिते मुरझाये ८५
रय्यति मोही सव माड़ो की मोहे बाल वृद्ध औ ज्वान॥
राजा बोला तब माड़व का योगिउ वचनकरो परमान ८६
लाखापातुरि म्बरे महलन में ताकी तानसुनी हम भाय॥
की हम मोहे त्वरि तानन में योगी सत्य दीन बतलाय ८७
सुनिकै बातैं महराजा की तुरतै ब्वला लहुरवा भाय॥
तुम बुलवायो त्यहि पातुरिको हमको तान सुनावैआय ८८
हुकुम लगायो महराजा ने लाखा तुरत पहूंची आय॥
तबला गमके ब्रजवासिनि के औध्वनिगई मँजीरनछाय ८९
लिह्यो सरंगी को भँडुवा तब लाखानचनलागि त्यहिठायँ॥
को गति बरणै तब लाखाकै हमरे बूत कही ना जाय ९०
जब दिशिआई वह योगिन के तब फिरि ब्बलालहुवाभाय॥
हुकुम जो पावें हम दादा को याको हार देयॅ पहिराय ९१
आल्हा बोले तब ऊदनते भैया मानो कही हमार॥
पहिरे देखी जम्बेमैराजा लाखा गले नौलखाहार ९२
मूड़ कटाई सब योगिन के भैया काहगयो भैया काहगयो बौराय॥
कही न मानी सो आल्हाकी ताको हार दीन पहिराय ९३