पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/९३

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४०. आल्ह खण्ड कौनकहैगतिक्षत्रिनकी ललितेपर जात कछूनहिंगायो १५२ पहिले मारुइ भइँ तोपन की पाछे चलनलागि तलवार । पैदरि पैदरि का झुरमुटभा औ असवारसाथ असवार १५३ चारिघरीभरि चली सिरोही वीरन रहे बीर ललकार ॥ भाला वरछिन की मारुइ भई कोताखानी चली कटार १५४ बड़ी मारुभइ बबुरीवनमाँ जूझनलागि सुघवा ज्वान ॥ कटि कटि शिरधरतीपर गिरिगे सबकाटिगयोअभिभान१५५ खट खट खट खट तेगा वोले रणमाँ छपक छपक तलवार ।। सन सन सन सन गोलीवरसैं खन खन कडावीनकी मार१५६ मर मर मर मर ढाल बोलें उन उन भालन को भनकार॥ झल्झल्झल्झल्छूरीझलके बोलें मारु मारु सब मार १५७ मूड़न केरे मुड़चौरा मे औ संडन के लाग पहार॥ कटि भुजदंडे.ग. क्षत्रिन की कल्लाकटे बछेरन क्यार १५८ रकतकि नदियातहँबहिनिकरी जूझे बड़े बड़े सरदार ॥ वहे वार तह जायँ क्षत्रिन के जैसे नदिया बहै सिवार १५६ गोहैं ऐसी भुजदण्डै तहँ ढालें कछवा सम उतराय ।। - छुरी कटारी मछली मानो औ धड़ नैयासमवहिजाय १६० काककंक तिन ऊपर बैठे मानो नदिया ख्यलें नेवार ॥ बेटा अनूपी आगे आयो सुरखा घोड़े पर असवार १६१ औ ललकारयो वघऊदन को ओ द्यावलि के राजकुमार ।। मरे सिपाहिन के का पइहो ऊदन तोरिमोरि तलवार९६२ बेटा अनूपी की बातें सुनि भा मन खुशी लहुखा भाय।। ऊदन बोले त्यहि क्षत्री ते तुम्हरी अवधिपहुँचीआय १६३ पहिली कैले समरभूमि में नाहर गेंडर के सरदार ॥