पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/९५

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आल्हखण्ड । ६० माथ नवावों पितु अपने का जिनमोहिविद्यादीनपढ़ाय १७६ करों तरंग यहाँसों पूरण तव पद सुमिरि भवानी कन्त॥ राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छायही मोरि भगवन्त १७७ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज वायू प्रयागनारायणजीकीयाज्ञानुसार उन्नामभदेशान्तर्गत पॅडरीकलां निवासि मिश्रवंशोद्भववुधकृपाशङ्करसूनु पं० ललिताप्रसादकृत अनुपीयधोनामतृतीयस्तरंगः ३ ॥ कवित्त ।। चन्द्रमालमुण्डमाललोचनविशाललाल श्रोदेतनवाघखाल पोदेभक्तपालहै । मोहमार कामजार चैलके सवार यार मोर रखवारहोहु नाम जक्तपाल है !! सोहैं शीशगंगा फिरै भंगके उमंगा नंगा संग अर्द्धगा गौरि दीननको द्याल है। ध्याचे औमनावै गा ललितहमेशशेश पावै नहिं पारशिवकालहको कालहै । सुमिरन ॥ दुर्गामाता -तुमका ध्यावों नितप्रति दुर्गापाठ सुनाय॥ तुम असिमाता को त्रिभुनमाँ ड्योढ़ी जासु जुहारों जाय ! भयू यशोदाके पेटे सों त्रिभुवन जान तुम्हारी गाथ ।। तुम्हरे भाई कृष्णचन्द्र मे त्रिभुवनपती चराचरनाथ २ जिनकी कीरति महभारत में पर्वे रची अठारह व्यास॥ मथा समुन्दर गा सतयुग में पूरी तवै सवैकी आश ३ भारत मथिकै गच्छोदर सुत गीता ताते कीन प्रकाश ।। गीता धीता जो कोउ कीन्ह्यो लीन्योजीति जगतकी फाँस ४ छुटि सुमिरनी गै देवनकै शाका सुनो बनाफर क्यार॥ जम्व राजा जो माड़ो का सूरज लड़िहै तासु कुमार "