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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/९५

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आल्हखण्ड। ९०

माथ नवावों पितु अपने का जिनमोहिंविद्यादीनपढ़ाय १७६
करों तरंग यहाँसों पूरण तव पद सुमिरि भवानी कन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छायही मोरि भगवन्त १७७

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नबलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकीयाज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पॅडरीकलां
निवासि मिश्रवंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
अनुपीवधोनामतृतीयस्तरंगः ३॥


कवित्त॥

चन्द्रभालमुण्डमाललोचनविशाललाल ओढ़ेतनबाघखाल पोढ़ेभक्तपालहै।
मोहमार कामजार बैलके सवार यार मोर रखवारहोहु नाम जक्तपाल है॥
सोहैं शीशगंगा फिरै भंगके उमंगा नंगा संग अंर्द्धगा गौरि दीननको द्यालहै।
ध्यावैं औमनावै गावैं ललितहमेश शेश पावैं नहिं पार शिवकालहूको कालहै १

सुमिरन॥

दुर्गामाता तुमका ध्यावों नितप्रति दुर्गापाठ सुनाय॥
तुम असिमाता को त्रिभुनमाँ ड्योढ़ी जासु जुहारों जाय १
भयू यशोदाके पेटे सों त्रिभुवन जान तुम्हारी गाथ॥
तुम्हरे भाई कृष्णचन्द्र मे त्रिभुवनपती चराचरनाथ २
जिनकी कीरति महभारत में पर्वै रची अठारह व्यास॥
मथा समुन्दर गा सतयुग में पूरी तबै सबैकी आश ३
भारत मथिकै गच्छोदर सुत गीता ताते कीन प्रकाश॥
गीता धीता जो कोउ कीन्ह्यो लीन्ह्योजीति जगतकी फाँस ४
छूटि सुमिरनी गै देवनकै शाका सुनो बनाफर क्यार॥
जम्बै राजा जो माड़ो का सूरज लड़िहै तासु कुमार ५