सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४
आल्हखण्ड। ९२

कउँधालपकनिबिजुलीचमकनि रणमाँचमकिचमकिरहिजाय १२
ऐसि सिरोही मलखाने कै ठाकुर समरधनी मलखान॥
काटि गिरायो रजपूतन को हाथिनमारि कीन खरिहान १३
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय॥
जैसे भाई आसमान में चन्दै राहु गरासै जाय १४
जैसे अर्ज्जुन के देखत में कौरव फौज जाय थर्राय॥
जैसे पूजे शिवशंकर के दारिद तुरतै जाय नशाय १५
तैसे मलखे ज्यहिदिशि जावैं सो गलियार पर दिखलाय॥
मलखे केरे भइ मुर्चा में क्वउ रजपूत न रोंकै पायँ १६
सूरजमल औ उदन बाँकुड़ा दोऊ करैं बराबर मार॥
वैस बराबर है दोऊ कै दोऊ समरधनी सरदार १७
गदा बनेठी दोऊ खेले कसरत करैं नटन के साथ॥
भाला बलछी दोनों बाँधे लीन्हे कड़ाबीन दोउहाथ १८
करैं पैतड़ा रण खेतन में दोऊ रहे दुहुँन ललकार॥
हनि हनि मारैं एक एक को दोऊ लेयँ ढालपर वार १९
बड़ी लड़ाई दोऊ कीन्ह्यो मानो छुटे जँगल के बाघ॥
हारि न माने कोउ कोऊ ते दोऊ बड़े लडैया घाघ २०
खैंचि सिरोही सूरज लीन्ह्यो करित रामचन्द्रको ध्यान॥
ऐंचि के मारा बधऊदन के दोऊ हाथ सॅभरिक ज्वान २१
दृष्टि सिरोही गै सूरज कै खाली मूठि हाथ रहिजाय॥
सूरज सोच्यो अपने मनमाँ हमरी मृत्यु गई नगच्याय २२
ऊदन बोल्यो तब सूरज सों मानो कही बघेलोराय॥
कोदो दैके बाढ़ि धरायो गम्हरे मरे चढ़ै ना घाय २३
सँमरिकै बैठो अब घोड़ापर क्षत्री खबरदार ह्वैजाय॥