पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/९७

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आल्हखण्ड । ६२ कउँधालपकनिविजुलीचमकनि रणमाँचमकिचमकिरहिजाय१२ ऐसि सिरोही मलखाने के ठाकुर समरधनी मलखान ॥ काटि गिरायो रजपूतन को हाथिनमारि कीन खरिहान १३ जैसे भेडिन भेड़हा पैठे जैसे अहिर बिडारै गाय ॥ जैसे भाई आसमान में चन्दै राहु गरासै जाय १४ जैसे अर्जुन के देखत में कौरव फौज जाय थर्राय ।। जैसे पूजे शिवशंकर के दारिद तुरतै जाय नशाय १५ तैसे मलखे ज्यहिदिशि जावें सो गलियार पर दिखलाय ॥ ॥ मलखे केरे भइ मुर्चा में कर रजपूत न रोंके पायँ १६ सूरजमल औ उदन वाँकुड़ा दोऊ करें वरावर - मार॥ वैस बरावर है दोऊ के दोऊ समरधनी सरदार १७ गदा वनेठी दोऊ खेले कसरत करें नटन के साथ ।। भाला वलछी दोनों बाँधे लीन्हे कड़ावीन दोउहाथ १८ करें पैतड़ा रण खेतन में दोऊ रहे दुहुँन ललकार।। हनि हनि मार एक एक को दोऊ लेय ढालपर वार १६ बड़ी लड़ाई दोऊ कीन्ह्यो मानो छुटे जंगल के बाघ । हारि न माने कोउ कोऊ ते दोऊ बड़े लडैया घाघ २० वंचि सिरोही सूरज लीन्ह्यो करित रामचन्द्रको ध्यान ।। ऐंचि के मारा वधऊदन के दोऊ हाथ सँभरिक ज्वान २१ दृष्टि सिरोही गै सूरज के, खाली मूठि हाथ रहिजाय ।। मूरज सोच्यो अपने मनमाँ हमरी मृत्यु गई नगच्याय २२ ऊदन वोल्यो तब सूरज सों मानो कही वघेलोराय ॥ कोदो देकं वादि धरायो गम्हरे मरे चढ़े ना घाय २३ समरिक बेटो अब घोड़ापर क्षत्री खबरदार लैजाय ॥