पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/९९

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आल्हखण्ड । ६४ बड़े सजीला जे क्षत्री थे घोड़न उपर भये असवार ३६ धरे नगाड़ा गे ऊंटन पर तो होन लगी तय्यार॥ गर्भगिरावनि कुँचासुखावनि लछिमिनतोपबड़ीहहकार ३७ ते सब तो रणखेतन को करिया तुरत दीन हकवाय ॥ बजे नगाड़ा फिरि ऊंटन पर हाहाकारी शब्द सुनाय ३% औरि बयरिया डोलन लागीं और होन लगे व्यवहार ॥ ढाढ़ी करखा बोलन लागे विपन कीन वेद उच्चार ३६ घोड़ पपीहा पचशब्दागज कोतल कीन गये तय्यार ।। बैटिग हाथी करिया वाला तापर होनलाग असवार ४० चींक तड़ाका भै सनमुखमाँ पंडित बोला शकुन विचार ।। तुम ना जावो रणखेतन को करिया माडो के सरदार ४१ राहु वारहें अठयें वेफ तुम्हरे दृष्टि शनीचर भाय ॥ घात चन्द्रमा दशयें आयो तुम ना धरो अगाड़ी पायँ ४२ सुनिकै बातें ये पण्डित की तुरतै बोला करिंगाराय ।। शकुन बिचार रय्यत रेजा जो धरि मौर वियाहनजाय ४३ शकुन विचारें कछु क्षत्री ना जोरण चर्दिकै लोह चबायें । कूचके डंका वाजन लागे मारू शब्द रहे हहराय ४४ रंगा चंगा शहाबाद के दोऊ घोड़न चढ़े पठान ॥ रण की मौहरि वाजन लागी घूमनलागे लाल निशान ४५ करिया चलिभो समरभूमि को मनमें श्रीगणेश को ध्याय ।। सुमिरि भवानी शिवशङ्कर को औ सुर्यन को माथ नवाय किह्यो कीर्तन कृष्णचन्द्र को जिन अर्जुनकी करी सहाय॥ दोउ पद बन्यो रामचन्द्र के लङ्का फते करी जिन जाय ४७ पूत अंजनी को हनुमत जो ताको वार बार शिरनाय ॥