१०८ आवारागर्द हेमलता ने ठंडी सांस भरकर कहा--"यहां कन्या-पाठशाला मे एक नौकरी मिल गई है। १००) मिलते हैं। पॉच बच्चे हैं। उनकी पढ़ाई में भी काफी खर्च हो जाता है।" बसतलाल चुपचाप कुछ सोचने लगे। उन्होंने आँख उठाकर हेमलता को देखना चाहा, पर देख न सके। हेमलता ने हॅस कर पूछा-"वह कैसी है ? कभी दिखलाइगा नहीं" वसतलाल भी हंस दिए। उन्होंने एक बार हेमलता की ओर देखा, और फिर अन्यत्र देखते हुए कहा-"विवाह मेरे भाग्य में न था, लता । मैने जीवन-भर अविवाहित रहने का प्रण करके ही लाहौर छोड़ा था।" हेमलता के सुन्दर होठ कॉपने लगे। उसने उसी भाँति कॉपते हुए कहा-"क्यों ?" "क्या भूल गई ? उस रोज़ हम लोगों ने क्या प्रतिज्ञा की थी तुमने कहा था, मर्द कभी प्रतिज्ञा नहीं निबाहते । उस समय मै चुप होगया था । आज भी चुप हूँ। जीवन के अन्त मे यदि मिल सकोगी, तो कहूंगा-देखो यह मर्द को प्रतिज्ञा!" हेमलता की ऑखो से भर-भर ऑसू बहने लगे। वह बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर कुछ कह न सकी । वह बड़ी देर तक रोती रही। कुछ देर बाद साहस करके बसंतलाल ने कहा-"लता, क्या तुम्हारे मन मे मेरा कुछ आदर है ?" "आदर, सिर्फ आदर ?” हेमलता ने ऑसूभरी आँखों से उन्हें देखकर कहा। बसंतलाल ने इस बार धरती की ओर ताककर कहा--"हाँ