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पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१०९

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आवारागर्द


हेमलता ने ठंडी सांस भरकर कहा—"यहां कन्या पाठशाला में एक नौकरी मिल गई है। १००) मिलते हैं। पाँच बच्चे हैं। उनकी पढ़ाई में भी काफी खर्च हो जाता हैं।"

बसंतलाल चुपचाप कुछ सोचने लगे। उन्होंने आँख उठाकर हेमलता को देखना चाहा, पर देख न सके।

हेमलता ने हँस कर पूछा—"वह कैसी हैं? कभी दिखलाइगा नहीं?"

बसंतलाल भी हंस दिए। उन्होंने एक बार हेमलता की ओर देखा, और फिर अन्यत्र देखते हुए कहा—"विवाह मेरे भाग्य में न था, लता। मैंने जीवन भर अविवाहित रहने का प्रण करके ही लाहौर छोड़ा था।"

हेमलता के सुन्दर होठ काँपने लगे। उसने उसी भाँति काँपते हुए कहा—"क्यों?"

"क्या भूल गई? उस रोज़ हम लोगों ने क्या प्रतिज्ञा की थी? तुमने कहा था, मर्द कभी प्रतिज्ञा नहीं निबाहते। उस समय मैं चुप हो गया था। आज भी चुप हूँ। जीवन के अन्त में यदि मिल सकोगी, तो कहूँगा—देखो यह मर्द की प्रतिज्ञा!"

हेमलता की आँखो से भर-भर आँसू बहने लगे। वह बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर कुछ कह न सकी। वह बड़ी देर तक रोती रही।

कुछ देर बाद साहस करके बसंतलाल ने कहा—"लता, क्या तुम्हारे मन मे मेरा कुछ आदर हैं?"

"आदर, सिर्फ आदर?" हेमलता ने आँसूभरी आँखों से उन्हें देखकर कहा।

बसंतलाल ने इस बार धरती की ओर ताककर कहा—"हाँ