. हेर फेर १०६ सता, सिर्फ आदर ही की बात मै पूछता हूँ, और कोई वात जबान पर न लाना।" हेमलता ने कपित स्वर में कहा-"मै आपका देवता की भॉति आदर करती हूँ।" "तव तुम मेरी बात सुनो । पति के लौट आने तक मेरा कुछ धन ग्रहण कर लो।" हेमलता के ऑसू सूख गए। उसने कहा-"मेरा पति पतित तो है, पर मै पति पद की प्रतिष्ठा की रक्षा करूँगी। आपका धन मै नहीं लूगी । मुझे कोई कष्ट नहीं है। परन्तु आप मेरी एक बात मान, तो कहूँ। "कहो।" "आप अवश्य ही ब्याह कर ले । मै विनती करती हूँ, हा-हा खाती हूँ, यदि मेरा दुख दूर किया चाहते हो।" वह धरती में पछाड़ खाकर गिर पडी, फूट-फूटकर रोने लगीं। वसंतलाल का धैर्य च्युत हो रहा था। उन्होंने कहा--"उठो लता, मै तुम्हे छू नहीं सकता। मेरे सामने इतना न तड़पो तुम्हारा यह वेश ही मेरे दर्द के लिये बहुत हैं । अपना अनुरोध भी वापस ले लो । जिस प्रतिष्ठा की रक्षा के विचार से तुम मेरा धन नहीं ग्रहण करतीं, उसी प्रतिष्ठा की रक्षा के विचार से इस जन्म मे मैं विवाह नहीं कर सकता । हेमलता, ईश्वर जानता है, मैं तुम्हारी अपेक्षा अधिक सुखी हूँ। अफसोस यही है, तुम्हें उस सुख में से कुछ भी नहीं दे सकता।" हेमलता कुछ देर धरती मे पड़ी रही। वसतलाल कुछ देर सोचते बैठे रहे। फिर आकर खडे हुए। उन्होंने कहा-"उठो लता तुम महावीर स्त्री हो, तुम धन्य हो । मुझे हँसकर बिदा दो। जा रहा हूँ।"