पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/११७

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आवारागद सुहागी, यहाँ ठहरने का कोई काम नही, ये लुच्चे हैं, दूकानदार नहीं।” बुढ़िया क्रोध की विप-भरी दृष्टि से युवक को देखती हुई, लड़की को एक प्रकार से खींचती हुई उठ कर चल दी. उसके जाने पर बंसी के बाप ने, गुस्से से चिल्लाकर कहा-"तुम्हारी यह नालायकी खूब रही। किसी की बहू-बेटी की इज्जत-आबरू अब तुम्हारी दूकान पर आने पर, बचना मुश्किल है। मेरे ही सामने तुम्हारी यह हरकत ।" बूढ़ा क्रोध मे आकर उठा, और वसी को दोनों हाथ से झकझोर डाला । परन्तु बुड्ड को ज्यादा जोर न लगाना पड़ा, बंसी गिरकर बेहोश हो गया, उसकी आँखे पलट गई, और सॉस ज़ोर-ज़ोर से चलने लगी। ( ३ ).

कई महीने के उपचार से बसी कुछ स्वस्थ हुआ। जब तक

वह बदहवास रहा, तब तक अस्फुट स्वर से सुहागी का नाम लेकर कभी हँसने लगता, और कभी इधर-उधर देखने लगता । कभी वह किसी वस्तु या आदमी को लक्ष्य करके और उसी को सुहागी समझकर इस तरह बाते करता, मानो वह दूकान पर बैठा हुआ कपड़े का थान वेच रहा है। वह हँस-हँसकर थानों की तारीफ़ करता और कहता, ले जा सुहागी, यह तेरे ऊपर खूब सोहेगा । २ - होश में आने पर बंसी ने फिर सुहांगी का नाम नहीं लिया। धीरे-धीरे वह फिर अपनी दूकान के काम मे लग गया। परन्तु उसका चेहरा पीला ही पड़ता गया, और उसकी आँखे गढ़े मे धंस गई। उसका खाना-पीना, बातचीत, सब कुछ असंयत हो गया। मानो वह किसी गूढ़ जगत् मे विचर रहा हो। माता-पिता ने बहुत समझाया । विवाह की चर्चा फिर, जोरों से चली, पर 'बंसी ने सुनी अनसुनी कर दी। सुहागी की चर्चा अब सर्वत्र फैल गई है-।-बहुत लोग नहीं जानते कि सुहागी कौन है, पर अब