पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तिकड़म

'अजी, हुआ यह कि एक दोस्त की शादी मे मुझे औरगाबाद जाना पड़ा। छुट्टी नहीं मिलती थी, फिर भी कुछ तिकड़म भिड़ा कर बड़े साहब को झाँसा-पट्टी दे छुट्टी वसूल ही ली। सच तो यों है होनी खीच ले गई! 'इतना कह कर मि० रामनाथ ने एक गहरी साँस ली, और मित्रों की ओर एक वार नैराश्य-पूर्ण दृष्टि से देखकर आकाश की ओर ताकने लगे।

मित्र-मण्डल खिलखिला कर हँस पड़ा। "आपको दोस्त की शादी में जाना पड़ा, माल उड़ाने पड़े, बरात का मजा लूटना पड़ा। इस के लिये आप लुहार की धोंकनी की तरह साँस खींच रहे है और फाते है होनी खीच ले गई। भई वाह! यह होनी हम गरीबों की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखती।"

मि० रामनाथ एकदम गुस्से से बौखला उठे। उन्होंने झुंझला कर हाथ की सिगरेट फैक दी और आँखे निकाल कर दोस्तों पर बरस पड़े।

दोस्तों ने कहा-"तो कहते क्यों नहीं? तुम हो तिकड़मबाज, कही उलझ पड़े होगे, और चाँद गरमा गई होगी, लो हम ने कह दिया। पूरब के देहाती जरा बेढब होते हैं"