पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/४१

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- . आवारागर्द चुपचाप पड़ी रही। गृहिणी जाती-जाती फिर रुक गई। उसने कहा"रजनी सुनती नहीं, मै क्या कह रही हूँ । भैया...... रजनी गर्ज उठी "भैया-जब देखो भैया, भैया आ रहे हैं तो मै क्या करू ? छत से कूद पडूं ? या पागल होकर बाल नोंच डालूँ ? भैया आरहे हैं या गॉव मे शेर घुस आया है। घर भर ने जैसे धतूरा खा लिया हो । भैया आते हैं तो आवे ? इतनी आफत क्यों मचा रखी है।" क्षण भर को गृहिणी अवाक हो रही, उसने सोचा भी न था कि रजनी भैया के प्रति इतना विद्रोह रखती है। भैया तो हर बार ही पत्र में रजनी की बात पूछता है । आने पर वह अधिक देर तक उसी के पास रहता है , बाते करता है, प्यार करता है। उसने क्रुद्ध दृष्टि से पुत्री की ओर देख कर कहा “भैया का आना इतना दुख रहा है रजनी !" "भैया का आना तो नही, तुम लोगों की यह हाय-हाय जरूर दुख रही है।" "क्यों दुख रही है री ?" "भैया घर में आ रहे हैं तो इतनी उछल कूद क्यों हो रही है" भैया घर मे आरहे हैं, तो हो नहीं ? क्या मेरे दस-पॉच हैं ? एक ही मेरी आँखों का तारा है। छः महीने में आरहा है । परदेस मे क्या खाता-पीता होगा, कौन जाने। उसे बड़ियाँ बहुत भाती हैं, मेरे हाथ की कढ़ी बिना उसे रसोई सूनी लगती है, आलू की कचौरी का उसे बहुत शौक है, यह सब इसी से तो बना रही हूँ। फिर इस बार आ रहे हैं, उनके कोई दोस्त । किसी रईस के बेटे होंगे। उनकी खातिर न करूं ?" "करो फिर । मेरा सिर क्यों खाती हो?"