था। मेरा असली चित्र भी एक वैज्ञानिक पत्रिका से मिल गया था। इतने पर भी उसका प्रेम प्रगाढ़ होता गया। उसने कहा—'प्रेम तो आत्मा की वस्तु है, शरीर और वासना से उसका क्या सम्बन्ध?' वह कहती गई—'उसने वह प्रेम पा लिया जो स्त्री-जाति के जीवन का सहारा हैं। धन्यवाद हैं ईश्वर का कि तुम्हारी आँखों और होठों में वह अप्रियभाव नहीं छिपा है, जो तुम्हारी भेजी हुई तुम्हारे मित्र की तस्वीर में था। जो, वे जब मुझे बम्बई में मिले—भली भाँति अनुभव करने में आया।'
बड़ी देर तक मैं बोल ही सहीं सका। पर उस अद्भुत लड़की ने मेरा सारा सङ्कोच भगा दिया। फिर तो दिनो-रात हमारी बाते हुई। सूफ़िया ने मिस्टर लाल को जैसा बनाया, जैसी उनकी गति बनी, उसे सुन कर हँसना रुका नहीं; मिस्टर लाल फिर मुझे मिले भी नही। सूफ़िया ने नहीं माना और मैने कॉलेज से इस्तीफा देकर सूफ़िया के साथ यूरोप की यात्रा की। इस के बाद सूफ़िया के प्रथम ही से किए गये प्रबन्ध के अनुसार मुझे स्पेन की यूनीवर्सिटी में एक अच्छी जगह मिली और अपने विशाल बन्धु-बान्धवों को आश्चर्य-चकित करके सूफ़िया ने मुझे विवाह-सूत्र मे बाँध लिया।