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पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/७८

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तस्वीर

कह दिया—'जाइए-जाइए, लड़कों को फिलाँसफी पढ़ाइये और बीबी के हाथ पर हर महीने पाँच सौ रुपये गिन दिया कीजिये, उन लोगों की नजर में और जँच जायेंगे। मगर आप फ़ोटो खिचवाने की हिमाकत कीजिए। इससे कला दूषित हो जायगी।' और सुनिए, यह बात भी उन्होंने कही चार दोस्तो में, जिससे मिस्टर भरूचा का खूब ही मजाक उड़ा, सो इस बार उन पर वार करके उन्होंने कसर पूरी कर ली।

डाँक्टर गोयल भी मिस्टर वेदवार से खार खाये बैठे थे, बोल उठे—'अब आप कहिये क्या कहते हैं? मैं समझना हूँ प्रोफेसर साहब की बात मे एक गहरी सचाई हैं।'

मिस्टर वेदवार ने सिगार में एक गहरा कश लगाया। धुँए का बादल ऊँचा मुँह कर के छोड़ा। फिर कहा—'मुश्किल क्या हैं, कैमरे से भी उसी प्रकार विचारों की तस्वीर खींची जा सकती हैं, जिस प्रकार कोई चित्रकार कूंची से खींचता हैं। वास्तव में कैमरा और कूँची दोनों ही तो एक साधन मात्र हैं, तस्वीर तो कलाकार का दिमाग ही खींचता हैं?'

सर फाज़ल-भाई जरा चैतन्य हो कर बोले—'तो आपका यह मतलब हैं कि आप रत्नयालात की तस्वीर खीच सकते हैं?' 'जरूर, यदि मुनासिब दाम मिले। मिस्टर वेदवार ने इस तरह मुस्कुरा कर यह जवाब दिया कि सर फाज़लभ-ाई एकदम उत्तेजित होकर बोले—'यदि आप मेरे एक शेर का फ़ोटो खींच सके तो मैं आप को मुँह माँगा दाम दूँगा।'

मिस्टर वेदवार ने हाथ का सिगार फेक दिया, जेब से पाँकेट बुक निकाल कर कहा—'बहुत अच्छा, आप यही बात इस नोट बुक मे लिख दे और वह शेर भी।'