बैठ कर अपने दिल के दर्द से इन पानी की धार के दर्द की कल्पना की होगी। कदाचित शाहजादी भी पत्थर पर सर दे मारना चाहती हो।
इन्हीं विचारो मे मिस्टर वेदवार उस फ़व्वारे को देखते रहे कई बार देखा और अन्त मे एक विचार उन्होंने तय किया। एक जे़बुन्निसाँ की मूर्ति तलाश की जाय, उसे इसी चौकी पर बैठाया जाय और उसके मस्तिष्क मे यही विचार उत्पन्न किया जाय और तब उसका एक फोटो ले लिया जाय।
अब मिस्टर वेदवार अपनी ढीली-ढाली पतलून में हाथ डाले, रूप के बाजार की सैर को निकले, काश्मीर भर की सुन्दरियाँ देख डालीं, मगर जो जे़बुन्निसाँ की आकृति की कोई लड़की उन्हे न मिली। वे हताश हो लाहौर आये। वहाँ भी घूमते रहे, तस्वीर खींचने से निराश हो रहे थे। एक दिन शाम को उन्होंने एक युवती को मोटर से उतर कर एक दुकान मे घुसते देखा। देखते ही उछल पड़े। वैसी ही नाक वैसी तीखी-आँखे, चौड़ा माथा, लम्बी गर्दन हू-ब-हू जैसे शाहजादी जे जे़बुन्निसाँ हो, वे खुशी-खुशी दुकान में घुस गये। घूर घूर कर ऊपर से नीचे तक युवती को देखने लगे। भीड़-भाड़ में किसी ने उनकी बेहूदगी पर गौर नहीं किया। युवती जब सौदा खरीद कर चली तो आप भी टेक्सी लेकर पीछे-पीछे चल दिये। और जब वह अपने बगले मे चली गई, तो आपने पता लगाया कि वह कोई सेशन जज हैं, जिनका यह बँगला है, उन्हीं की वह पुत्री है।
आपने खट से अपना कार्ड जज साहब को भेज दिया। मिलने पर आपने संक्षेप में अपना परिचय देकर कहा,—'कृपा कर आप अपनी पुत्री का एक फोटो खींच लेने की आज्ञा दे दीजिये।' जज साहब बहुत भड़के-भन्नाये; परन्तु वेदवार साहब