सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८५
तेरह बरस बाद

रह-रहकर अमला के मन में यह होता था कि वह उसके पति नहीं हैं। पति का नाम मन में उदय होते ही जो रोमांचकारी परिवर्तन उसके शरीर में होता था, वह उन्हें देखकर नही होता था।

घर में और भी औरतें थीं। दो ननँदे थीं—एक विधवा, एक कुँआरी। एक जिठानी थी, एक सास। इन के सिवा कुछ दिन तो पास-पड़ोसिनों का तोता बँधा रहा। उन सब ने बारीक नज़र से अमला को देखा, जैसे कोई भूली चीज़ पहचानी जा रही हो—चोरी के माल की शिनाख्त हो रही हो। अमला को यह सब बहुत बुरा लगा। उसे देख-देख कर जो औरते चुपचाप संकेत का एकाध वाक्य कहती थी, पास-पड़ोसिने उसकी सास को जिन शब्दों में बधाई देती थीं, उन सबसे तो खीझकर अमला रोने लगी। उसने सोचा, जैसे मैं मोल खरीदा वर्तन हूँ, हर कोई ठोक-बजाकर देखता हैं कि ठीक है या नही? तब इस सब अप्रिय वातावरण में एक प्रिय वस्तु थी, वह उसकी कुमारी छोटी ननँद कुंद। वही सब से पहले पालकी में अमला के पास घुस बैठी थी। वही अमला का घूँघट हटाकर हँसी थी। वही उसका आँचल पकड़ घर मे खींच लाई थी। वही दिन-भर अमला के पास रहकर पल-पल में उसे खाने-पीने, सोने-बैठने को पूछ रहीं थी। वह एक प्यारी-सी तितली थी। अमला ने देखा, जैसे वह कुछ उसी का ज़रा गोरा एक संस्करण है। अभी दो दिन पहले पिता के घर में अमला ऐसी ही तो थी। जो हो, अमला की सबसे प्रथम घनिष्ठता कुंद से हुई। कुंद का आसरा लेकर अमला उस घर मे रहने लगी। धीरे-धीरे सब कुछ सात्म्य हो गया। सब कुछ सम हो गया। अमला ने सास की सुजन मूर्ति को समझ लिया, पति के सौजन्य को भी जान लिया। पति-पत्नी आशातीत ढग से झटपट ही पुराने होने लगे। उनके जीवन मे गदह-पचीसी के