पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/८७

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८६ आवारागद विनोद, भूले, मान-मनौवल, रूठना, विवाद बहुत कम आते। अमला ने पति के शुद्ध, गंभीर प्रम को पहचान लिया। पति को देखकर लाज से सिकुड़ना झटपट ही समाप्त हो गया । हास- विनोद का अध्याय बहुत कम पढ़ा गया । वह जैसे कुछ महीनों मे ही गृहिणी बन गई । अब वह पति को देखते ही उनकी आव- श्यकताओं का ध्यान करने लगी। वह दिन-भर खटपट में लगी रहती। बातचीत जब दोनों की होती, किसी-न-किसी कार्य-वश । जैसे पाल मे झटपट पकाए फलों का स्वाद डाल से-टूटे ताज़ फलों-जैसा न होकर कुछ कृत्रिमसा होता है, वैसे ही असमय में इस पति-पत्नी की दायित्व-पूर्ण घनिष्ठता ने अमला को अस्वा- भाविक गंभीर और अपनी समस्त आयु और स्थिति से कहीं बहुत अधिक कृत्रिम बना दिया। इसका सबसे बड़ा असर अमला ही पर पड़ा । उसके शरीर और मन, दोनों ही का विकास रुक गया । पति के घर में रहने को, उसे अपना मानने को जैसे, उसे विवश किया गया हो । वहाँ की दीवारे, कमरे, सामान, बिछौने, कपड़े, सभी कुछ अपरिचित-से उसे प्रतीत होने लगे। सास, ससुर, देवर और पति भी जैसे उसे कर्तव्य-वश अपने समझने पड़े। उदय की परिस्थिति कुछ और ही थी। जैसे फॉसी की आज्ञा पाने पर कोई अपील मे छूट जाय, ठीक उसी भॉति अमला को फिर से पत्नी-रूप मे पाकर वह केवल संतोष की एक गहरी सॉस ले सके थे । अमला के प्रारंभिक उल्लास और नवीन जीवन की ओर उन्होने दृष्टि-पात ही नहीं किया। और, इसी से, बिना खाद-पानी के पौदे की भॉति, वह मुर्भाकर सूख भी गया । परन्तु उदय के लिये मानो सब एकरस था। अमला की यह परिवर्तित, फीकी मनोवृत्ति जैसे उनके लिये सात्म्य हो गई थी। फिर भी. अमला के प्रति एक उत्सुकता, प्रेम और सहानुभूतिमयी भावना .