"यह गुड़िया यहाँ आई कहाँ से?"
"कहीं से आई, तुम्हें मतलब?"
"मतलब बहुत हैं। इस गुड़िया को मैं पहचानता हूँ।"
"तुम?"
"हाँ, यही वह गुड़िया हैं। तुम्हारे पास कहाँ से आई?"
"मेरे पास यह बहुत दिन से हैं।"
"कितने दिन से?"
"जब मैं बहुत नन्ही थी, तब से।"
"कहाँ से आई?"
"एक बहुत अच्छे आदमी थे, उन्होंने दी थी।"
"तुम्हें दी थी—अमला? तुम क्या कह रही हो?"
"मुझे याद हैं, उन दिनों मै बहुत छोटी थीं।"
"तुम?"
"हाँ, वह मुझे गोद में खिलाते थे। पेट पर उछालते थे। मेला दिखाने ले जाते थे। अंधा घोड़ा बनते थे। वह बहुत अच्छे थे?"
"अमला!" उदय उन्मत्त हो रहे थे, उन्होंने कहा—"कहाँ की बात है यह?"
"मेरे नाना के घर की।"
"तुम्हारे पिता तो लाहौर में हैं?"
"पर मै बचपन मे नाना के घर बहुत दिन रही थी—वह इंजीनियर थे, और जंगल मे नहर पर रहते थे।"
"अमला, तुम मुझे पागल कर दोगी। तो वह अच्छे आदमी कौन थे?"
"यह याद नहीं। नाना के पास आते थे। मेरे लिये मिठाई लाते थे। एक दिन वह यह गुड़िया लाये थे, फिर नहीं आए। मैं पिताजी के यहाँ चली आई।"