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पृष्ठ:इंशा अल्लाह खान - रानी केतकी की कहानी.pdf/२२

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रानी केतकी की कहानी

दिखावे, जो नाच चाहे सो नचावै। भभूत लड़को को क्या देना था। हिरनी हिरन उदैमान और सूरजभान उसके बाप और लछमीबास उनकी माँ को मैंने किया था। फिर उन तोनों को जैसा का तैसा करना कोई बड़ी बात न थी। अच्छा, हुई सो हुई। अब उठ चलो, अपने राज पर बिराजो और ब्याह को ठाट करो। अब तुम अपनी बेटी को समेटो, कुँवर उदैमान को मैंने अपना बेटा किया और उसको लेके मैं ब्याहने चढ़ँगा।" महाराज यह सुनते ही अपनी गद्दी पर आ बैठे और उसो घड़ी यह कह दिया "सारी -ऋतों और कोठों को गोटे से मढ़ो और सोने और रूपे के सुनहरे रुपहरे सेहरे सब झाड़ पहाड़ों पर बाँध दो और पेड़ों में मोती की लड़ियाँ बाँध दो और कह दो, चालीस दिन रात तक जिस घर में नाच आठ पहर न रहेगा, उस घर वाले से मैं रूठ रहूँगा, और यह जानूँगा यह मेरे दुख सुख का साथी नहीं। और छः महीने कोई चलनेवाला कहीं न ठहरे। रात दिन चला जावे।" इस हेर फेर में वह राज था। सब कहीं यही डौल था।


जाना महाराज, महारानी और गुसाई महेंदर गिर
का रानी केतकी के लिये

फिर महाराज और महारानी और महेंदर गिर मदनबान के साथ जहाँ रानी केतकी चुपचाप सुन खींचे हुए बैठी हुई थी, चुप चुपाते वहाँ आान पहुँचे। गुरुजी ने रानी केतकी को अपने गोद में लेकर कुँवर उभान का चढ़ावा चढ़ा दिया और कहा—तुम अपने माँ बाप के साथ अपने घर सिधारो। अब मैं बेटे उभान को लिये हुये आता हूँ।" गुरूजो गोसाईं जिनको दंडौत है, सोतो वह सिधारते हैं। आगे जो होगो सो कहने में आवेगो—यहाँ पर धूम धाम और फैज़ावा अब ध्यान कीजिये। महाराज जगतपर-